आओ एक नए समाज का निर्माण करें
मेरा अनुरोध उन पढ़े-लिखे छात्र-छात्राओं और शोधार्थियों से है
जो एक बेहतर समाज बनाना चाहते है...। जिस समाज में जाति, धर्म, लिंग, रूप, रंग,
गरीबी-अमीरी के आधार पर किसी के साथ भेदभाग न हो सकें। स्त्री-पुरूष दोनों को समान
हक और अधिकार, प्रतिनिधित्व और सहभागिता मिल सकें। मेरा मकसद किसी त्योहार की
बुराई या विरोध करना नहीं है, मेरा मकसद है सच्चाई को अंत-अंत तक सिर्फ सच्चाई को
बताना है।
होलिका भली थी या बुरी
यह तो मैं नहीं जानता। पर पढ़ लिखकर इतना जरूर समझा कि होली किसी स्त्री को जिन्दा
जलाकर जश्न मनाने की सांकेतिक पुनरावृत्ति है। मैंने विभिन्न प्रसंगों में यह सुना
कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, फिर होलिका के साथ प्रहलाद आग में न जले ऐसा सम्भव
नहीं। अभी तक मेरे मन में उठे इस प्रश्न का जवाब मैं नहीं पाया कि रात्रिकाल में
क्यों किसी स्त्री को जलाया गया….? अभी तक रात्रि में शवदाह
की परम्परा हमारी संस्कृति में नहीं है। होलिका का दोष क्या था…..? होलिका को किसने जलाया….? क्या होलिका को जलाने समय
उसके परिजन वहाँ मौजूद थे…..? पहले मैं इस बारे में सोचा भी
नहीं था। परंतु शिक्षा एक ऐसी रसायन है जो मन में तर्क करने की क्षमता का विकास कर
देती है। अब मैं उस त्योहार के लिए आप सबको कैसे बधाई एवं शुभकामनाएँ दूँ। जिस
त्योहार में किसी स्त्री को जलाया गया हो। जो होलिका दहन करता है क्या वह स्वयं
अपने अंदर की बुराई को जला पाया है….? यदि नहीं तो उसे किसी
दूसरे बुरे आदमी को जलाने का अधिकार किसने दिया…..? माफ
कीजिएगा मित्रों मैं इस स्त्री विरोधी त्योहार में आपको बधाई नहीं दे पाऊँगा। मेरे
विचार से आप भी सहमत हों, मैं ऐसा नहीं मानता।
धर्म के आगे क्या हमारी
पढ़ाई-लिखाई, वैज्ञानिक सोच, तार्किकता के आधार पर सवाल नहीं कर सकते हैं....?
बिल्कुल कर सकते हैं दोस्तों आज सवाल खड़े करने होगें। जिस प्रकार से वाक् ने
पुरूषों की बलि का सबसे पहले विरोध किया। उसके बाद पशुओं की बलि दी जाने लगी। (बलि
की प्रथा कुटदंत सुत्त में मिलती है।) उसी प्रकार से सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था और
जातिवाद, किसी भी प्रकार की बलि का प्रखर विरोध तथागत गौतम बुद्ध ने किया। इसी
प्रकार से कबीर, रैदास, पेरियार ई.वी.रामास्वामी, ज्योतिबराव फूले, शाहूजी महाराज,
सावित्रीबाई फूले, बिरसा मुंडा, झलकारी बाई, रानी दुर्गावती, भगत सिंह, राजगुरू,
सुखदेव, डॉ. अम्बेडकर, कांशीराम आदि ने सवालों को खड़ा किया। और समाज को वैज्ञानिक
दृष्टिकोण से नई-दिशा देने का काम किया है। इसलिए एक बार आप सभी लोग इस पर विचार
अवश्य करें....। आइए...
हम सभी मिलकर एक स्वस्थ
समाज का निर्माण करें...।
जय
भीम.....! जय भारत.....!! सेवा जोहार.....!!!
रजनीश
कुमार अम्बेडकर
पी.एच-डी., शोध छात्र,
स्त्री अध्ययन विभाग
महात्मा
गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-442001 (महाराष्ट्र)
मो.09423518660/08421966265
Email: rajneesh228@gmail.com
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