शहीद
बहन होलिका दिवस– रजनीश कुमार अम्बेडकर
भारत
देश की जनगणाना 2011 के अनुसार पुरूषों एवं महिलाओं का प्रतिशत क्रमश: 51% और 49%
है। हमारे देश में प्रति माह कोई न कोई त्यौहार
मनाया जाता है। जबकि विश्व के अनेक देशों
में ऐसा नहीं आखिर क्यों....? हमारे यहां एक और मान्यता यह है कि त्यौहारों से आपस
की दूरियां खत्म होती है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि जबसे मैंने समाज के
बारे में जानने और समझने की कोशिश की तो मुझे पता चला हैं।
आखिर क्या कारण हैं इसके पीछे जैसे बात करते है- करवा चौथ, नवव्रत, गणेश पूजा, नागपंचमी, दीपावली, होली, रक्षा-बंधन, भैयादूज, दशहरा, लड़का-लड़की न होने पर व्रत, घर में शांति के लिए व्रत आदि की। इतिहास को पढ़ने से पता चलता है कि आर्यों-अनार्यो के बीच जो युद्ध हुए उन सब युद्धों में भारत के मूलनिवासी अनार्यों को विदेशी आर्यों द्वारा चल-कपट के द्वारा ही हराया गया था। युद्ध में हारे हुए अनार्यो को गुलाम बना लिया गया। अनार्यों की हार के बाद आर्यों ने उनका नाम भी बदल दिया। उन्हें असुर, राक्षस, चंडाल, शुद्र, व अछूत आदि नामों से पुकारा।
आखिर क्या कारण हैं इसके पीछे जैसे बात करते है- करवा चौथ, नवव्रत, गणेश पूजा, नागपंचमी, दीपावली, होली, रक्षा-बंधन, भैयादूज, दशहरा, लड़का-लड़की न होने पर व्रत, घर में शांति के लिए व्रत आदि की। इतिहास को पढ़ने से पता चलता है कि आर्यों-अनार्यो के बीच जो युद्ध हुए उन सब युद्धों में भारत के मूलनिवासी अनार्यों को विदेशी आर्यों द्वारा चल-कपट के द्वारा ही हराया गया था। युद्ध में हारे हुए अनार्यो को गुलाम बना लिया गया। अनार्यों की हार के बाद आर्यों ने उनका नाम भी बदल दिया। उन्हें असुर, राक्षस, चंडाल, शुद्र, व अछूत आदि नामों से पुकारा।
वर्तमान
समय में इन्हीं अनार्यों को दलित, आदिवासी और बहुजन आदि नामों से जाना जाता है।
युद्ध में हारने के बाद से ही अनार्यों के सभी मानवीय अधिकार छीन लिए गए।
आर्यों ने इनकी शिक्षा तथा धन-संग्रह पर विशेष पाबन्दी लगा दी और इनके खिलाफ सख्त
कानून भी बना दिए। जो आज भी पुराणों व
स्मृतियों में देखे जा सकते है।
प्राचीन काल में वर्तमान लखनऊ (उत्तर प्रदेश की राजधनी) के समीप 110 कि.मी. की दूरी पर हरदोई नाम का एक जिला है। उस प्राचीन समय में इसका नाम हरिद्रोही था, जो कालांतर में हद्दोई और फिर हरदोई हो गया।
इसी हरदोई के राजा का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप आदिवासी अनार्य राजा था, जिसके वंशज आज के शूद्र और अछूत हैं। अनार्यों को सभी तरह से प्रतिबंधित करने के बाद आर्यों ने उन्हें घृणित कार्यों को करने के लिए मजबूर कर उन पर तमाम अत्याचार किए। इन तथ्यों के समर्थन में अनेक प्रमाण ब्राह्मण ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं। आर्यों के सत्ता पर अधिकार कर लेने के बाद से देश के अधिकांश उत्सव अथवा त्यौहार मूलनिवासी योद्धाओं पर विजय पाने की ख़ुशी में या फिर आर्य योद्धाओं का महिमामंडन के रूप में मनाए जाते रहे है। उसी प्रकार का होली त्यौहार भी मूलनिवासी अनार्य राजा हिरण्यकश्यप तथा उसकी बहन होलिका से सम्बंधित संपूर्ण अनार्यों के अपमान का दिन है। यानी मूलनिवासियों के पराजय का दिन है, परन्तु अपने इतिहास के सही जानकारी न होने के कारण आज मूलनिवासी लोग भी इस त्यौहार को खूब जमकर मनाते है।
इन्हें पता नहीं हैं कि जाने-अनजाने में वे अपने ही पूर्वजों का अपमान कर रहे है।
प्राचीन काल में वर्तमान लखनऊ (उत्तर प्रदेश की राजधनी) के समीप 110 कि.मी. की दूरी पर हरदोई नाम का एक जिला है। उस प्राचीन समय में इसका नाम हरिद्रोही था, जो कालांतर में हद्दोई और फिर हरदोई हो गया।
इसी हरदोई के राजा का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप आदिवासी अनार्य राजा था, जिसके वंशज आज के शूद्र और अछूत हैं। अनार्यों को सभी तरह से प्रतिबंधित करने के बाद आर्यों ने उन्हें घृणित कार्यों को करने के लिए मजबूर कर उन पर तमाम अत्याचार किए। इन तथ्यों के समर्थन में अनेक प्रमाण ब्राह्मण ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं। आर्यों के सत्ता पर अधिकार कर लेने के बाद से देश के अधिकांश उत्सव अथवा त्यौहार मूलनिवासी योद्धाओं पर विजय पाने की ख़ुशी में या फिर आर्य योद्धाओं का महिमामंडन के रूप में मनाए जाते रहे है। उसी प्रकार का होली त्यौहार भी मूलनिवासी अनार्य राजा हिरण्यकश्यप तथा उसकी बहन होलिका से सम्बंधित संपूर्ण अनार्यों के अपमान का दिन है। यानी मूलनिवासियों के पराजय का दिन है, परन्तु अपने इतिहास के सही जानकारी न होने के कारण आज मूलनिवासी लोग भी इस त्यौहार को खूब जमकर मनाते है।
इन्हें पता नहीं हैं कि जाने-अनजाने में वे अपने ही पूर्वजों का अपमान कर रहे है।
अब सवाल
यह उठता है कि समाज के बौद्धिक वर्ग और राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ तमाम सारे
महिला संगठन महिला सशक्तिकरण की बात खूब करते रहते है। लेकिन जिस ब्राह्मणवाद ने
महिलाओं की स्थिति को दोयम दर्जे की नरकीय जिंदगी जीने को विवश किया। फिर
प्रतिवर्ष हमारे देश में ‘होलिका दहन’ परम्परा के नाम पर एक स्त्री को जलाकर
महिलाओं को अपमानित करने के साथ ही होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं.....???
ऐसे तमाम प्रश्न खड़े होते है।
खासकर देश के विभिन्न-विश्वविद्यालयों में जहां “स्त्री अध्ययन विभाग” हैं। उसमें
पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं, शोध छात्र-छात्राएं, प्रोफेसर आदि से मेरा।
अगर बात
करें वर्ष 2011-12 के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों के महिला प्रोफेसरों की कुल
संख्या-2628 हैं। (जिसमें GEN.-1721, OBC-142, SC-164, ST-185, PWD-13,
MUSLIM-346, OMC-57) वहीं पुरूषों की संख्या-7458 है। उसी प्रकार से राज्य
विश्वविद्यालयों के महिला प्रोफेसरों की कुल संख्या-10402 हैं। (जिसमें-GEN.-7199,
OBC-1482, SC-961, ST-176, PWD-100, MUSLIM-218, OMC-266) वहीं पुरूषों की
संख्या-28176 है।
भारतरत्न
बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी द्वारा लिखित “भारत का संविधान” समान अवसर की
बात करता है। जिसमें लिंग भेदभाव नहीं होगा, लेकिन जिस देश में नारियों को पूजा
जाता हो, वहीं उनको प्रतिनिधित्व के सवाल पर इतना अंतर क्यों....???? तब मेरा एक
सवाल समाज के बौद्धिक वर्ग, राजनीतिक पार्टियों और महिला संगठनों से हैं कि “शहीद बहन होलिका दिवस” को जश्न/त्यौहार के रूप में न
मना के “शोक दिवस” के रूप में मनाने का अभियान क्यों नहीं चलाया जाता है...??? यदि
सही मायने में हम-सभी महिलाओं को पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते
हैं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व को स्वीकारना चाहते हैं। तभी
हम सही मायने में “महिला सशक्तिकरण” की बात कर सकते हैं वरना महिलाओं के साथ सिर्फ
बेमानी होगी। आइए हम-सब मिलकर अंधविश्वास और पाखण्ड जैसी तमाम कुरीतियों के खिलाफ
एक जुट होकर संघर्ष करें, और 21वीं सदी में महिलाओं को सम्मान के साथ देखें और
उनका सहयोग प्राप्त कर देश को उन्नति के शिखर पर ले चलने का काम करें। तभी सही
मायने में महिला सशक्तिकरण हो सकता है।