Thursday, 24 December 2015

SNITHIKA, ISSN 2454-2881
 (An International Annual Multidisciplinary and Multilingual Refereed Research Journal) Vol-I, 2015 में सिलचर, असम में “सामाजिक चिंतन : हिंदू कोड बिल और स्त्री प्रश्न” के विषय पर प्रकाशित मेरा लेख..... 






Tuesday, 24 November 2015


शांतिमय विश्व के लिए बुद्ध चाहिए
दलित अस्मिता (ISSN-2278-8077) त्रैमासिक पत्रिका, (संयुक्तांक अंक-19, 20) अप्रैल-सितम्बर-2015, नई दिल्ली में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट 





Saturday, 22 August 2015

हमारा समाज एक बेहतर समाज

हमारा समाज एक बेहतर समाज कैसे बने....???
जिसकी बात आए दिन जो भी लोग करते रहते हैं उनसे मेरा एक सवाल कि आप वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते है या फिर आप अवैज्ञानिकता और अतार्किकता में विश्वास करते है..... इसको जरुर बताए....????
भारतीय समाज में जातिवाद को स्थापित करने वाले तथाकथित ब्राह्मणों का हाथ रहा है....जिन्होंने समाज को वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ जाति-व्यवस्था में बांटने का काम किया है....! दुनिया के परिदृश्य में भारत के अलावा अन्य देशों में यदि देखें तो पता चलता हैं कि किसी भी समाज को चलाने के लिए तीन वर्गों की आवश्कता होती है......!
जो इस प्रकार से हैं-
1-बौद्धिक वर्ग= जो समाज को चालने के लिए दिशा-निर्देश देने का काम करते हैं!
2-योद्ध वर्ग= ये लोग बाहरी आक्रमण से रक्षा करने का काम करते हैं!
3-श्रमिक वर्ग= ये लोग समाज में अपने श्रम के माध्यम से खाने-पीने के अलावा तमाम सारी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं!
अब सवाल यह खड़ा होता है दुनिया के तमाम सारे छोटे से लेकर बड़े देश भारत की तुलना में आज तकनीकी, शैक्षणिक, स्वास्थ्य-व्यवस्था, रहन-सहन, खान-पान, आवागमन की सुविधा, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से आगे क्यों है....?????
मेरा मानना हैं कि जो भी देश वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते हैं वो कोई भी देश हो निरंतर विकास के पथ पर अग्रसित होता रहेगा......!
अब फिर सवाल उठता है क्या भारत में वैज्ञानिकता और तार्किकता को माना जाता हैं यहां तो ऐसे उदाहरण मिलते है जहां पर खीर-खाने से बच्चें पैदा हो जाते है, जहां मिट्टी की मूर्ति तथाकथित गणेश हजारों टन लीटर दूध पी जाते हैं.....! जबकि बच्चें कैसे पैदा होते है आज सभी को पता हैं, जिस देश में गरीब बच्चों को पिलाने के लिए दूध नहीं मिलता हो वहां पर अंधविश्वास ने नाम पर हजारों टन लीटर दूध बहा दिया जाता हैं...!
अब जो लोग आरक्षण (प्रतिनिधित्व) का विरोध करते हैं शायद ये लोग भूल जाते हैं, समाज में पढ़ने-लिखने का अधिकार या समाज के प्राकृतिक संसाधनों पर किसका अधिकार रहा है....????
इतिहास इस बात का गवाह है भारत में ब्राह्मणों, क्षत्रिय और वैश्यों का इन सब पर जो अधिकार बनाया या यूं कहें क्या ये आरक्षण नहीं था....????
इसीलिए मैं यह कहना चाहता हूँ आरक्षण कोई नई-व्यवस्था नहीं बल्कि जो हजारों सालों से भारत में विद्धमान रही है उसी को खत्म करने का काम आधुनिक भारत के लाखों-करोड़ों के मुक्तिदाता भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर द्वारा निर्मित “भारत का संविधान” ने 26 जनवरी 1950 से जब भारत में लागू हुआ.....! तबसे समाज में जिनको हजारों सालों से प्राकृतिक संसाधनों के वंचित रखा गया था...! इस दिन से समाज के सभी लोगों का प्रतिधिनित्व हो, जिसके लिए आरक्षण (प्रतिनिधित्व) की व्यवस्था की गई......!
आरक्षण के संदर्भ में बाबासाहब ने दो बातें कही थी- पहली बात तो यह है कि सबको अवसर की समानता मिलनी चाहिए और दूसरी बात कुछ समुदायों को, जिनकी ओर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, प्रशासन में आरक्षण या प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए! 
अब समाज के कुछ सवर्ण लोग बात करते है- आरक्षण जातिवाद फैला रहा है....!
दोस्तों मैं पूछना चाहता हूँ, भारत में आरक्षण पहले था या वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया गया....
जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं....! उन महानुभावों से विनम्र अनुरोध है कि इसका जवाब दें जिससे मैं भी ज्ञान प्राप्त कर सकूं.....!
लोकतंत्र के बारे में मैं कहना चाहता हूँ कि स्वतंत्र भारत में भारत का संविधान’ 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ । उसी दिन से भारत में जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार स्थापित हुई । लेकिन हकीकत क्या है, शायद किसी से छिपी नहीं रह गई है ? इसलिए लोकतंत्र के बारे में भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने बहुत पहले ही कहा था कि लोकतंत्र सिर्फ शासन की एक विधा ही नहीं है, मुख्य रूप से यह जीवन के साथ जुड़ने का एक तरीका है और अनुभव को संयुक्त रूप से प्रेषित करना है । यह वास्तव में अपने साथियों के प्रति सम्मान का भाव दिखाने और आदर प्रकट करने जैसा है ।वह इसे भाईचारे के बराबर मानते हैं और कहते हैं कि भाईचारा लोकतंत्र का एक और नाम है अन्यत्र उन्होंने इसे अपने तीन प्रिय सिद्धांत- स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा कहा है ।

मेरे अनुसार इसका हल 21वीं सदी में यह होगा-
अब सवाल उठता है जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं । वो किस तरह का समाज बनाना चाहते है..?????
क्या इस तरह का समाज जिसमें गैरबराबरी-व्यवस्था को बनाए रखें....??????
या फिर गैरबराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर मानवतावादी व्यवस्था बनाने वाली विचारधारा जिसमें संपूर्ण मानव का निर्माण समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व एवं न्याय के आधार पर किया जा सकें। ऐसी सामाजिक-व्यवस्था बनाने के लिए हमें अम्बेडकरी विचारधारा की आवश्कता होगी । इसको हम अम्बेडकरवाद कह सकते है । ऐसी व्यवस्था में सबको विकास एवं समान प्रतिनिधित्व का अधिकार मिलता है ।
अम्बेडकरवाद किसी भी धर्म, जाति या रंगभेद को नहीं मानता, अम्बेडकरवाद मानव को मानव से जोड़ने या मानव को मानव बनाने का नाम है । अम्बेडकरवाद वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानव के उत्थान के लिए किए जा रहे आन्दोलन या प्रयासों के नाम हैं ।
अम्बेडकरवाद “भारत के संविधान” को भी कहा जा सकता है ।
एक अम्बेडकरवादी होना तभी सार्थक है, जब मानव वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना कर समाज और मानवहित में कार्य किया जाए ।
अब तय आप लोग करें...... गैरबराबरी वाला समाज चाहिए या समतामूलक समाज......
जरूर बताए  .....!
फिर जी खोलकर आरक्षण का विरोध करें....
मैं आप के साथ में कधें-से कंधा मिलाकर चलूंगा.......!


रजनीश कुमार अम्बेडकर 
पी-एच.डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभगा 
म.गां. अं. हिं.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
मो.-09423518660
email: rajneesh228@gmail.com


Thursday, 23 July 2015


Asian Journal of Advance Studies (ISSN 2395-4965) 

An International Research Refereed Journal to Higher Education A Multidiciplinary Research Journal for All, Jan.-March 2015 में हिंदी दलित उपन्यासों में अम्बेडकरवाद विषय पर प्रकाशित मेरा लेख.........!












Saturday, 30 May 2015




शहीद बहन होलिका दिवस– रजनीश कुमार अम्बेडकर

भारत देश की जनगणाना 2011 के अनुसार पुरूषों एवं महिलाओं का प्रतिशत क्रमश: 51% और 49% है हमारे देश में प्रति माह कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है जबकि विश्व के अनेक देशों में ऐसा नहीं आखिर क्यों....? हमारे यहां एक और मान्यता यह है कि त्यौहारों से आपस की दूरियां खत्म होती है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि जबसे मैंने समाज के बारे में जानने और समझने की कोशिश की तो मुझे पता चला हैं
आखिर क्या कारण हैं इसके पीछे जैसे बात करते है- करवा चौथ, नवव्रत, गणेश पूजा, नागपंचमी, दीपावली, होली, रक्षा-बंधन, भैयादूज, दशहरा, लड़का-लड़की न होने पर व्रत, घर में शांति के लिए व्रत आदि की इतिहास को पढ़ने से पता चलता है कि आर्यों-अनार्यो के बीच जो युद्ध हुए उन सब युद्धों में भारत के मूलनिवासी अनार्यों को विदेशी आर्यों द्वारा चल-कपट के द्वारा ही हराया गया था युद्ध में हारे हुए अनार्यो को गुलाम बना लिया गयाअनार्यों की हार के बाद आर्यों ने उनका नाम भी बदल दिया उन्हें असुर, राक्षस, चंडाल, शुद्र, व अछूत आदि नामों से पुकारा
वर्तमान समय में इन्हीं अनार्यों को दलित, आदिवासी और बहुजन आदि नामों से जाना जाता है युद्ध में हारने के बाद से ही अनार्यों के सभी मानवीय अधिकार छीन लिए गए आर्यों ने इनकी शिक्षा तथा धन-संग्रह पर विशेष पाबन्दी लगा दी और इनके खिलाफ सख्त कानून भी बना दिए जो आज भी पुराणों व स्मृतियों में देखे जा सकते है
प्राचीन काल में वर्तमान लखनऊ (उत्तर प्रदेश की राजधनी) के समीप 110 कि.मी. की दूरी पर हरदोई नाम का एक जिला है उस प्राचीन समय में इसका नाम हरिद्रोही था, जो कालांतर में हद्दोई और फिर हरदोई हो गया
इसी हरदोई के राजा का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप आदिवासी अनार्य राजा था, जिसके वंशज आज के शूद्र और अछूत हैं। अनार्यों को सभी तरह से प्रतिबंधित करने के बाद आर्यों ने उन्हें घृणित कार्यों को करने के लिए मजबूर कर उन पर तमाम अत्याचार किए। इन तथ्यों के समर्थन में अनेक प्रमाण ब्राह्मण ग्रंथों में आज भी मौजूद हैं। आर्यों के सत्ता पर अधिकार कर लेने के बाद से देश के अधिकांश उत्सव अथवा त्यौहार मूलनिवासी योद्धाओं पर विजय पाने की ख़ुशी में या फिर आर्य योद्धाओं का महिमामंडन के रूप में मनाए जाते रहे है उसी प्रकार का होली त्यौहार भी मूलनिवासी अनार्य राजा हिरण्यकश्यप तथा उसकी बहन होलिका से सम्बंधित संपूर्ण अनार्यों के अपमान का दिन है। यानी मूलनिवासियों के पराजय का दिन है, परन्तु अपने इतिहास के सही जानकारी न होने के कारण आज मूलनिवासी लोग भी इस त्यौहार को खूब जमकर मनाते है।
इन्हें पता नहीं हैं कि जाने-अनजाने में वे अपने ही पूर्वजों का अपमान कर रहे है।
अब सवाल यह उठता है कि समाज के बौद्धिक वर्ग और राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ तमाम सारे महिला संगठन महिला सशक्तिकरण की बात खूब करते रहते है। लेकिन जिस ब्राह्मणवाद ने महिलाओं की स्थिति को दोयम दर्जे की नरकीय जिंदगी जीने को विवश किया। फिर प्रतिवर्ष हमारे देश में ‘होलिका दहन’ परम्परा के नाम पर एक स्त्री को जलाकर महिलाओं को अपमानित करने के साथ ही होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं.....???
ऐसे तमाम प्रश्न खड़े होते है। खासकर देश के विभिन्न-विश्वविद्यालयों में जहां “स्त्री अध्ययन विभाग” हैं। उसमें पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं, शोध छात्र-छात्राएं, प्रोफेसर आदि से मेरा।
अगर बात करें वर्ष 2011-12 के अनुसार केंद्रीय विश्वविद्यालयों के महिला प्रोफेसरों की कुल संख्या-2628 हैं। (जिसमें GEN.-1721, OBC-142, SC-164, ST-185, PWD-13, MUSLIM-346, OMC-57) वहीं पुरूषों की संख्या-7458 है। उसी प्रकार से राज्य विश्वविद्यालयों के महिला प्रोफेसरों की कुल संख्या-10402 हैं। (जिसमें-GEN.-7199, OBC-1482, SC-961, ST-176, PWD-100, MUSLIM-218, OMC-266) वहीं पुरूषों की संख्या-28176 है।
भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर जी द्वारा लिखित “भारत का संविधान” समान अवसर की बात करता है। जिसमें लिंग भेदभाव नहीं होगा, लेकिन जिस देश में नारियों को पूजा जाता हो, वहीं उनको प्रतिनिधित्व के सवाल पर इतना अंतर क्यों....???? तब मेरा एक सवाल समाज के बौद्धिक वर्ग, राजनीतिक पार्टियों और महिला संगठनों से हैं कि “शहीद बहन होलिका दिवस” को जश्न/त्यौहार के रूप में न मना के “शोक दिवस” के रूप में मनाने का अभियान क्यों नहीं चलाया जाता है...??? यदि सही मायने में हम-सभी महिलाओं को पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व को स्वीकारना चाहते हैं। तभी हम सही मायने में “महिला सशक्तिकरण” की बात कर सकते हैं वरना महिलाओं के साथ सिर्फ बेमानी होगी। आइए हम-सब मिलकर अंधविश्वास और पाखण्ड जैसी तमाम कुरीतियों के खिलाफ एक जुट होकर संघर्ष करें, और 21वीं सदी में महिलाओं को सम्मान के साथ देखें और उनका सहयोग प्राप्त कर देश को उन्नति के शिखर पर ले चलने का काम करें। तभी सही मायने में महिला सशक्तिकरण हो सकता है।   
 




आरक्षण (प्रतिनिधित्त्व) क्यों नहीं मिलना चाहिए…….????

आज जहां से देश में बौद्धिक वर्ग का निर्माण होता है....वहां पर क्या जातिवाद नहीं है......???
इसलिए इस रिपोर्ट को जरूर पढ़ें....!
आइये देखते है देश के कुल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल प्रोफेसरों के पद-10086 हैं। जिसमें OBC- 642 (पुरूष- 500, महिला-142), SC- 695 (पुरूष- 531, महिला-164), ST- 502 (पुरूष- 317, महिला-185), PWD- 72 (पुरूष- 59, महिला-13), MUSLIM- 1420 (पुरूष- 1074, महिला-346) और OTHER MINIORITY COMMUNITIES- 150 (पुरूष- 93, महिला-57) हैं जो कुल मिलाकर 3481 पदों पर हैं। जिसमें GEN.- 6605 पदों पर हैं। अत: अंतर साफ नजर आता होगा कौन किसके पदों पर कब्जा बनाए हुए है....???

इसी प्रकार से देश के कुल राज्य विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के पद- 38578 हैं। जिसमें OBC- 6067 (पुरूष- 4585, महिला-1482), SC- 3567 (पुरूष- 2606, महिला-961), ST- 648 (पुरूष- 472, महिला-176), PWD-134 (पुरूष- 100, महिला-34), MUSLIM- 998 (पुरूष- 780, महिला-218), और OTHER MINIORITY COMMUNITIES- 636 (पुरूष- 370, महिला-266) हैं। जो कुल मिलाकर 12050 पदों पर हैं। जिसमें GEN.- 26528 पदों पर हैं। इसमें भी आप लोगों को अंतर साफ नजर आता होगा कौन किसके पदों पर कब्जा बनाए हुए है...???
(स्रोत- UGC REPORT RTI : 2011-12)
अब सवाल उठता है जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं ।
वो किस तरह का समाज बनाना चाहते है....?????
क्या इस तरह का समाज जिसमें गैरबराबरी-व्यवस्था को बनाए रखें....?????
या फिर गैरबराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर मानवतावादी व्यवस्था बनाने वाली विचारधारा जिसमें संपूर्ण मानव का निर्माण समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व एवं न्याय के आधार पर किया जा सकें। ऐसी सामाजिक-व्यवस्था बनाने के लिए हमें अम्बेडकरी विचारधारा की आवश्कता होगी। इसको हम अम्बेडकरवाद कह सकते है। ऐसी व्यवस्था में सबको विकास, समान प्रतिनिधित्व एवं सहभागिता का अधिकार मिलता है।
अम्बेडकरवाद किसी भी धर्म, जाति या रंगभेद को नहीं मानता, अम्बेडकरवाद मानव को मानव से जोड़ने या मानव को मानव बनाने का नाम है। अम्बेडकरवाद वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानव के उत्थान के लिए किए जा रहे आन्दोलन या प्रयासों के नाम हैं।
अम्बेडकरवाद “भारत के संविधान” को भी कहा जा सकता है।
एक अम्बेडकरवादी होना तभी सार्थक है, जब मानव वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना कर समाज और मानवहित में कार्य किया जाए।
अब तय आप लोग करें......
गैरबराबरी वाला समाज चाहिए या समतामूलक समाज......
जरूर बताए .....!
फिर जी खोलकर आरक्षण का विरोध करें....

मैं आपके साथ में कधें-से कंधा मिलाकर चलूंगा.......!


Thursday, 16 April 2015



डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा पर वर्धा में
आयोजित हुई दो सप्ताह की कार्यशाला
मैत्री टाइम्स, जनवरी-फरवरी-मार्च, 2005, नई दिल्ली

के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट.....!







Saturday, 28 March 2015


संत कबीर के दोहे और दलित विमर्श
सामाजिक न्याय संदेश, मासिक पत्रिका, नई दिल्ली से
जून 2014 अंक में प्रकाशित मेरा लेख.....!










Saturday, 28 February 2015


Journal of Humanities and Culture (ISSN 2393-8285) An International Research Refereed Journal to Higher Education, Oct.-Dec.2014 में स्त्री मुक्ति के आदर्श : आखिर जरूरत किसकी है....?” विषय पर प्रकाशित मेरा लेख.........!












Monday, 23 February 2015


निमित्त, त्रैमासिक ई-पत्रिका

 महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) से प्रकाशित जिसमें मेरी कविता स्त्री शिक्षा की ज्योति’........!
पूरा लेख पढ़ने के लिए 
 Online Magzeen link Open:







Monday, 26 January 2015



महिलाओं के खिलाफ हिंसा सिर्फ यौन हिंसा तक सीमित नहीं है : एनी राजा
 मंगलवार, सितंबर 09, 2014                          ISSN NO.-2394-093X

(नेशनल फेडरेशन ऑफ़ इन्डियन वीमेन 11-12-13 सितम्बर को अपनी स्थापना का 60वां वर्ष मना रहा है। इसकी राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा से स्त्रीकाल के लिए बातचीत की पत्रिका के सम्पादक द्वय संजीव चन्दन और धर्मवीर सिंह ने। प्रस्तुति और ध्वन्यांकन : रजनीश कुमार आंबेडकर)

पूरा लेख पढ़ने के लिए  

Online Magzeen Link Open: