बहुजन रंगमंच को नया आयाम देते: श्याम कुमार
रजनीश कुमार अम्बेडकर
अंबेडकरी
आंदोलन अब महज विचार-चिंतन और साहित्य तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि रंगमंच के
माध्यम से भी सामाजिक परिवर्तन का काम जारी है। लखनऊ में पिछले दिनों सम्पन्न चौथे
बाल नाट्य समारोह एवं दूसरे बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर प्रबुद्ध
नाट्य समारोह की अपार सफलता ने बहुजन रंगमंच के बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त
किया। लखनऊ में पिछले कई वर्षों से भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी की स्थापना करके ऊर्जावान
और अंबेडकरी मिशन के प्रति समर्पित युवा रंगकर्मी श्री श्याम
कुमार बहुजन रंगकर्म को नया आयाम देने के काम में दिन-रात लगे हुए हैं। श्याम जी दलितों में बेहद पिछड़े धानुक
जाति से हैं। श्याम आरंभ से ही स्पोर्ट्स में काफी
सक्रिय रहे और 12 वर्ष की उम्र में ही उन्हें भारोत्तोलन (वेट लिफ्टिंग) में राष्ट्रीय
स्तर पर खेलने का मौका मिला। उन्होंने महज 16
वर्ष में भारोत्तोलन में जूनियर स्टेट चैम्पियन और 17 वर्ष में सीनियर स्टेट
सिल्वर मेडल के साथ 1991 में लखनऊ विश्वविद्यालय से सिल्वर स्टार बेस्ट अवार्ड प्राप्त
किया।
श्याम स्पोर्ट्स में सक्रिय तो थे लेकिन
बाबा साहेब डॉ अंबेडकर के विचारों से गहरे स्तर पर प्रभावित होने के कारण वे अपने
समाज के लिए कुछ खास करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें रंगमंच का माध्यम सबसे बेहतर
लगा और 1996 में वे सक्रिय रूप से रंगमच से जुड़ गए। पहले कई ग्रुप के साथ काम
किया। वंशी कौल (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली) के साथ श्याम ने 1996-97 तक
रंग विदूषक रंगमंडल, भोपाल में एक वर्ष तक रहकर नाटक की बारीकियाँ सीखीं। लेकिन माता
जी की तबियत ख़राब होने के कारण उन्हें वापस लखनऊ आना पड़ा और फिर उन्होंने भारतेंदु
नाट्य अकादमी, लखनऊ में 1997-98 तक काम किया।
सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ (पूर्व निदेशक, भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ) की
‘निपा रंगमंडली संस्था’ में इनके साथ बहुत कुछ सीखने को मिला। इसलिए सूर्यमोहन
कुलश्रेष्ठ और वंशी कौल को वे अपना थियेटर का गुरु मानते हैं। सूर्यमोहन
कुलश्रेष्ठ के साथ लाहौर में आयोजित वर्ल्ड आर्ट परफार्मिग फेस्टिवल, 2005 में
जाने का मौका मिला। वहाँ ‘बेगम और बागी’ नाटक में श्याम ने प्रमुख भूमिका निभाई और
श्याम के बेटे मानवेन्द्र कुमार ने इसी नाटक में बेगम के लड़के का रोल किया।
रंगमंच में सक्रिय रहते हुए श्याम के मन
में दलित रंगमंच को लेकर हमेशा एक बेचैनी सी बनी रहती थी और वे रंगमंच को बाबा
साहेब की वैचारिकी से जोड़कर कुछ खास करना चाहते थे। अपने इसी सपने को साकार करने
के लिए उन्होंने 2004 में सम्यक् नाट्य संस्थान की स्थापना की। इसका मुख्य
उद्देश्य बहुजन रंगकर्म के प्रति समर्पित लेखकों, निर्देशकों एवं अभिनेताओं को मंच
प्रदान करना था। साथ ही आम आदमी को उत्कृष्ट एवं उद्देश्यपूर्ण नाट्य प्रस्तुतियों
तथा नाट्य प्रदर्शनों के द्वारा नाट्य विधा से जोड़ना भी था। इनकी ये भी कोशिश रही
कि विशेषकर वंचित तबके से जुड़े समसामयिक विषयों, उपन्यास व कहानियों पर नाटक तैयार
कर उनका मंचन हो। ‘लखनऊ महोत्सव’ में भी इनकी संस्था हर बार नाटकों का सफल मंचन
करती आ रही है। बाद में अपने काम को और विस्तार देने के लिए श्याम ने 2011 में भारतीय दलित नाट्य अकादमी की स्थापना की। 2014 में इसका नाम बदलकर भारतीय बहुजन
नाट्य अकादमी कर दिया गया। श्याम के साथ उनका पूरा परिवार इनके साथ नाटक में
सक्रिय है। इनके दोनों बच्चे मानवेंद्र और शाश्वत तथा पत्नी अर्चना आर्या इनके साथ
हमेशा समर्पित रहते हैं। अर्चना आर्या से श्याम जी की पहली मुलाकात रंगमंच के
माध्यम से 1996 में लखनऊ में हुई थी। अर्चना जाटव जाति से थीं इसलिए उनके घरवाले
शादी के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन इस विरोध के बावजूद दोस्तों की मदद से 1997 में
ये दोनों जीवनसाथी बन गए और अंबेडकरी मिशन में एक साथ लगे हुए हैं।
अभी तक श्याम और अर्चना ने मिलकर लगभग 40 नाटकों में
अभिनय व 25 नाटकों का निर्देशन किया है। जिसमें कुछ प्रमुख नाटक हैं- एक था गधा उर्फ़ अलादाद खां, तुक्के पे तुक्का,
चंद्रिमा सिंह उर्फ़ चमकू, मृच्छकटिकम (मिट्टी की गाड़ी), हर क्षण विदा है, सदा
सार्थक बुद्ध, नीति मानकीरिण, द ग्रेट राजा मास्टर, बेगम और बागी, नया बीज,
देशद्रोही की माँ, दहशत आत्म अग्नि, चुनाव चक्रम, रेशम, सलीम शेरवानी की शादी,
स्वप्न मृत्यु, बारह सौ छब्बीस बटा सात, कथा एक पेड़ की, पूरब से पश्चिम की ओर,
अहसास, अश्वत्थामा, रावण, भरतनाट्य (मिसफिट), डोम पहलवान, कामरेड का बक्सा, जब
मैंने जात छुपाई, आषाड़ का एक दिन, बुद्धं सरणं गच्छामि, 23 मार्च भगाणा कांड,
थेरीगाथा और दिल्ली की गद्दी पर खुसरो। श्याम और अर्चना के थियेटर ग्रुप में सबसे कम उम्र 3 वर्ष से
लेकर बड़े-बुजुर्ग कलाकार तक काम करते हैं। अभी तक लगभग 300 लोगों में 200 लड़कियों और 100 लड़कों को ये
अपने वर्कशॉप में प्रशिक्षण दे चुके हैं। श्याम इन बच्चों को खुले माहौल जैसे मोहल्ले/पार्क आदि में
प्रशिक्षण देते हैं क्योंकि अभी इनके पास इतने संसाधन नहीं हैं। लखनऊ में अब नाटकों के माध्यम से समाज
की समस्याओं को सामने लाने वालों में श्याम की संस्था का नाम बड़े ही गर्व से लिया
जाता है। संसाधनों की कमी के बावजूद श्याम दलित-पिछड़े वर्ग के बच्चों को रंगमंच का
निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। श्याम की समाज के प्रबुद्ध वर्ग से अपेक्षा है कि स्कूल, कॉलेज,
विश्वविद्यालय, सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के सेमिनार/कार्यक्रमों में नाटकों का
मंचन होना चाहिए। जिससे समाज की समस्याओं और अच्छाइयों को दृश्य एवं
श्रव्य दोनों के माध्यम से पेश किया जा सके। लोगों पर इस माध्यम का प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ता है।
श्याम ने लखनऊ से बाहर भी कई राज्यों में अपने नाटकों का मंचन किया है। सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एवं आर्ट, नई दिल्ली द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय
सम्मलेन,2012 में श्याम के निर्देशन और मुख्य भूमिका में ‘डोम
पहलवान’ नाटक का शानदार मंचन हुआ। 2013 में
अंबेडकरी युवा साहित्य सम्मेलन, यवतमाल, महाराष्ट्र में ‘कॉमरेड का बक्सा’ नाटक काफी प्रशंसित रहा था। इन्होंने कुछ टेलीविज़न धारावाहिकों में भी अभिनय किया है। ‘हम भी इंसान हैं’ (टेली फिल्म), ‘अपने हुए पराये’, सज्जाद जहीर पर वृत्तचित्र तथा जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘गुंडा’ आदि में
इन्होंने अभिनय किया है। साथ ही अर्चना आर्या ‘सरसों के फूल’, ‘फ़ांस’ आदि में काम कर चुकी हैं। रंगमंच में किए
योगदान के लिए श्याम को युवा रंगकर्मी सम्मान, समन्वय सेवा सम्मान, दलित रंगकर्मी
एवं सामाजिक उत्थान सेवा सम्मान, युवा अम्बेडकरी नाट्य निर्देशक सम्मान, राष्ट्रीय युवा नाट्य सम्मान जैसे
पुरस्कार-सम्मानों से नवाजा गया है।
श्याम कुमार अब हर साल बहुजन नाट्य समारोह का बड़े पैमाने पर आयोजन करते हैं। इसके
पीछे उनका मुख्य उद्देश्य बहुजन समाज के महानायकों महात्मा ज्योतिबाराव फूले, भगवान बुद्ध, शाहूजी महाराज,
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और पेरियार आदि की विचारधारा को रंगमंच के माध्यम से समाज
के बीच ले जाना है और पूरे बहुजन समाज को एक करना है। वे चाहते हैं कि इसके माध्यम
से पूरे देश का बहुजन रंगमंच सामने आए और वंचित समाज की नई पीढ़ी इससे जुड़े।
इन
समारोहों में अब वैचारिक विचार-विमर्श भी होती है। इनका उद्धेश्य ही है कि इसके
द्वारा अपने समाज के साहित्यकार, नाटककार, मीडियाकर्मी, थियेटर, फिल्म एवं टी.वी.
कलाकार, लेखक, चिंतक, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता सब एक जुट हों और मिलकर
काम करें। भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी समाज के सभी पहलुओं को रंगमंच के माध्यम से
प्रस्तुत कर रहा है और सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवतन लाने
के लिए प्रयासरत है जिससे समाज के हर क्षेत्र में लोगों को प्रतिनिधित्व का
अधिकार मिल सकें। निश्चित रूप से श्याम कुमार वंचित तबके के लिए एक बड़ा काम कर रहे
हैं।
रजनीश कुमार अम्बेडकर
शोधार्थी
बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर दलित एवं जनजाति अध्ययन केंद्र
म.गां.अ.हिं.वि.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
मो.-08423866182/09305366228
Email:rajneesh228@gmail.com
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