Friday, 2 March 2018



महिलाओं के सम्मान में 8 मार्च है मैदान में
**************************************
देश में आए दिन कहीं न कहीं किसी लड़की या महिला को रोज जलाया जा रहा है। 
पर हमसे क्या...??
बुराई पर अच्छाई के नाम पर प्रतिवर्ष तमाम सारे लोगों को जलाया जाता है जिसमें #बहन_होलिका भी हैं। पहले मैं भी इस आयोजन में शामिल होता था। लेकिन जब उच्च शिक्षा में आया और जलाए जाने वालों के बारे में पढ़ा-लिखा तब हक्कीत पता चली। इसलिए मेरा एक अनुरोध है तमाम उन युवाओं से जो सामाजिक न्याय और सामाजिक परिवर्तन के पक्ष में बात करते है कृपया #होली के बारे में सही जानकारी जरूर लें। और समाज में फैली इस तरह की अमानवीय कुप्रथाओं को समाप्त करवाने में अपना सहयोग करें।



अभी 8 मार्च को खूब महिला अधिकारों की बात की जायेगी, जिसमें ये मुद्दा गायब ही रहता है वरना हजारों सालों से ये प्रतीक के रूप आज नहीं मनाया जाता।
मेरा विरोध किसी त्यौहार या ख़ुशी को सेलिब्रेट करने से नहीं है। मेरे अनुसार इसकी आड़ में अन्धविश्वास, धार्मिक पाखंडता, आडंबर और कुप्रथाओं को फैलाना बिलकुल गलत है।
वरना पढ़ाई-लिखाई करना किस काम की।
**************

जागो और जगाओं
जनहित में जारी...
************

★★★★★★★★★



रजनीश कुमार अम्बेडकर
पीएचडी, रिसर्च स्कॉलर, स्त्री अध्ययन विभाग,
म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)


Saturday, 29 October 2016

दिवाली का त्यौहार बहुजन समाज को
क्यों नहीं मानना चाहिए...?
दिवाली का त्यौहार आ रहा है और भारत के हर घर में दिवाली बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी है। लेकिन क्या मूलनिवासियों SC/ST/OBC/MINORITY को यह पता है कि यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है....???
अगर पूछेगे की क्यों मनाया जाता है...??? तो कुछ भाई बोलेगे की राम के आने की खुशी में।
जबकि राम की तो चैत मास के शुक्ल पक्ष में घर वापसी हुई थी फिर कार्तिक मास में दीवाली क्यों मनाई....???

चलो मान लिया दीवाली मनाई तो फिर ये लक्ष्मी पूजा का फंडा क्यों.....???
अगर लक्ष्मी पूजा करने से धन का आगमान होता या सुख शांति मिलती।
तो भारत देश को विदेशों से अरबों का उधार लेने की जरुरत नहीं पड़ती।
दुनिया का सबसे आमिर आदमी बिल गेट्स है
उसने तो कभी भी लक्ष्मी की पूजा नहीं की........
क्या विश्व जगत के बिलिन्नेयार्स को लक्ष्मी नाम की देवता का पता नहीं....???
लेकिन लक्ष्मी देवी को मानने वाले और सालों से पूजा करने वाले भारत की गरीबी विश्व के कुछ देशों से भी बदतर है......
कड़वा सच है ये आप माने या ना माने 
धन की देवी लक्ष्मी की पूजा सिर्फ हमारे देश मे की जाती है, फिर भी देश की 75% जनता गरीबी और भुखमरी से लड़ रही है।
अन्न उत्पादन करने कि देवी अन्नपुर्णा की पूजा भी सिर्फ हमारे देश मेँ होती है।।
फिर भी हमारे देश के हजारोँ गरीब किसान हर साल अत्महत्या कर लेते है।
बारीश के देवता इन्द्र की पूजा भी सिर्फ हमारे ही देश में होती है फिर भी कभी सुखा तो कभी बाढ़ आ जाती है।
औरत को हमारे यहाँ देवी का दर्जा दिया जाता है फिर भी दहेज के लिए हर साल हजारों औरतों को जिन्दा जला दिया जाता है। 
अतिथि देवो भवः अतिथि को भगवान माना जाता है।
फिर भी अक्सर विदेश से आए अतिथियों की हत्या या बलात्कार होना हमारे यहाँ आम बात है।
#अप्प_दीपो_भव: अब तो मूर्खता का दामन छोड़ो....
कोई भी देश या उस देश का व्यक्ति आमिर या गरीब, 
किसी भगवान् की पूजा करने से नहीं होता बल्कि उस देश की अर्थ नीति और सबको समान शिक्षा प्रणाली उब्लब्ध करने की नीति से होता है...
#दीपक_अगर_जलता_है_वो_जलकर_सुहाना_उजियारा_देता_है....
#जबकि_बारूद_धमाके_के_साथ_हवा_को_भी_विषैली_कर_देता_है....
भारत में फैला मनुवाद भी किसी बारूद से कम नहीं है जो देश में पाखंड का आतंक फैलाये हुए है।
जीवन से धार्मिक अंधकार मिटाने के लिए...
शिक्षा का अधिकार खासकर महिलाओं को प्रदान करवाया
बाबासाहब की विचारधारा का दीपक एक तुम जलाओ और एक मैं...
इतिहास गवाह है हर ब्राह्मण पाखंडी नहीं होता...
लेकिन हर पाखंडी ब्राह्मण जरूर होता है...
जो अंधविश्वास के दम पर भारत में सत्ता की दुकान जमाए हुए है।
हमें अपनी विचारधारा के दीपक से अपनी कौम में फैले अंधियारे को दूर करना है।
जय भीम.....जय भारत.....जय संविधान.....


रजनीश कुमार अम्बेडकर
पीएच.डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-442001 (महाराष्ट्र)
मो.09423518660/08421966265


Thursday, 20 October 2016


सच्चा करवा चौथ
किसी माता बहिन के व्रत रहने,
 भूखे मरने, ढोंग पाखंड करने, देवी-देवताओं की पूजा पाठ करने इत्यादि से अपने पति की उम्र नहीं बढ़ेगी।
यदि वास्तव में आपको अपने पति की उम्र बढ़ाना है उन्हें दीर्घायु बनाना है
 
तो निम्न काम कीजिए-
#अपने पति का बीड़ी पीना छुड़वाईए
ताकि धूम्रपान से फेफड़े खराब न हो।
#जर्दा तम्बाकू खाना बंद करवाईए
ताकि केंसरर इत्यादि से बचा जा सके।
#शराब पीना या अन्य किसी भी प्रकार का नशा बंद करवाईए
ताकि पाप
, अनाचार, दुर्घटनाओं आदि से बच सकें।
#बस इतना कीजिए, समझो आपका #करवा_चौथ का व्रत पूर्ण हुआ
बाकि सब ढोंग है
, पाखंड है,
महिलाओं को मानसिक गुलाम बनाने का ब्राह्मणवादी षड्यंत्र है।
सामाजिक परिवर्तन की आवाज़ को बुलंद करना होगा... अभी नहीं तो कभी नहीं...
 
जय भीम.... हूल जोहार....

रजनीश कुमार अम्बेडकर
पीएच.डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभाग  
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-442001 (महाराष्ट्र)
मो.09423518660/08421966265

Monday, 4 April 2016


आओ एक नए समाज का निर्माण करें


मेरा अनुरोध उन पढ़े-लिखे छात्र-छात्राओं और शोधार्थियों से है जो एक बेहतर समाज बनाना चाहते है...। जिस समाज में जाति, धर्म, लिंग, रूप, रंग, गरीबी-अमीरी के आधार पर किसी के साथ भेदभाग न हो सकें। स्त्री-पुरूष दोनों को समान हक और अधिकार, प्रतिनिधित्व और सहभागिता मिल सकें। मेरा मकसद किसी त्योहार की बुराई या विरोध करना नहीं है, मेरा मकसद है सच्चाई को अंत-अंत तक सिर्फ सच्चाई को बताना है। 

होलिका भली थी या बुरी यह तो मैं नहीं जानता। पर पढ़ लिखकर इतना जरूर समझा कि होली किसी स्त्री को जिन्दा जलाकर जश्न मनाने की सांकेतिक पुनरावृत्ति है। मैंने विभिन्न प्रसंगों में यह सुना कि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, फिर होलिका के साथ प्रहलाद आग में न जले ऐसा सम्भव नहीं। अभी तक मेरे मन में उठे इस प्रश्न का जवाब मैं नहीं पाया कि रात्रिकाल में क्यों किसी स्त्री को जलाया गया….? अभी तक रात्रि में शवदाह की परम्परा हमारी संस्कृति में नहीं है। होलिका का दोष क्या था…..? होलिका को किसने जलाया….? क्या होलिका को जलाने समय उसके परिजन वहाँ मौजूद थे…..? पहले मैं इस बारे में सोचा भी नहीं था। परंतु शिक्षा एक ऐसी रसायन है जो मन में तर्क करने की क्षमता का विकास कर देती है। अब मैं उस त्योहार के लिए आप सबको कैसे बधाई एवं शुभकामनाएँ दूँ। जिस त्योहार में किसी स्त्री को जलाया गया हो। जो होलिका दहन करता है क्या वह स्वयं अपने अंदर की बुराई को जला पाया है….? यदि नहीं तो उसे किसी दूसरे बुरे आदमी को जलाने का अधिकार किसने दिया…..? माफ कीजिएगा मित्रों मैं इस स्त्री विरोधी त्योहार में आपको बधाई नहीं दे पाऊँगा। मेरे विचार से आप भी सहमत हों, मैं ऐसा नहीं मानता।
धर्म के आगे क्या हमारी पढ़ाई-लिखाई, वैज्ञानिक सोच, तार्किकता के आधार पर सवाल नहीं कर सकते हैं....? बिल्कुल कर सकते हैं दोस्तों आज सवाल खड़े करने होगें। जिस प्रकार से वाक् ने पुरूषों की बलि का सबसे पहले विरोध किया। उसके बाद पशुओं की बलि दी जाने लगी। (बलि की प्रथा कुटदंत सुत्त में मिलती है।) उसी प्रकार से सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था और जातिवाद, किसी भी प्रकार की बलि का प्रखर विरोध तथागत गौतम बुद्ध ने किया। इसी प्रकार से कबीर, रैदास, पेरियार ई.वी.रामास्वामी, ज्योतिबराव फूले, शाहूजी महाराज, सावित्रीबाई फूले, बिरसा मुंडा, झलकारी बाई, रानी दुर्गावती, भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, डॉ. अम्बेडकर, कांशीराम आदि ने सवालों को खड़ा किया। और समाज को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नई-दिशा देने का काम किया है। इसलिए एक बार आप सभी लोग इस पर विचार अवश्य करें....। आइए...
हम सभी मिलकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करें...।  
जय भीम.....!   जय भारत.....!!      सेवा जोहार.....!!!
रजनीश कुमार अम्बेडकर
पी.एच-डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभाग  
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-442001 (महाराष्ट्र)
मो.09423518660/08421966265
Email: rajneesh228@gmail.com


Thursday, 24 December 2015

SNITHIKA, ISSN 2454-2881
 (An International Annual Multidisciplinary and Multilingual Refereed Research Journal) Vol-I, 2015 में सिलचर, असम में “सामाजिक चिंतन : हिंदू कोड बिल और स्त्री प्रश्न” के विषय पर प्रकाशित मेरा लेख..... 






Tuesday, 24 November 2015


शांतिमय विश्व के लिए बुद्ध चाहिए
दलित अस्मिता (ISSN-2278-8077) त्रैमासिक पत्रिका, (संयुक्तांक अंक-19, 20) अप्रैल-सितम्बर-2015, नई दिल्ली में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट 





Saturday, 22 August 2015

हमारा समाज एक बेहतर समाज

हमारा समाज एक बेहतर समाज कैसे बने....???
जिसकी बात आए दिन जो भी लोग करते रहते हैं उनसे मेरा एक सवाल कि आप वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते है या फिर आप अवैज्ञानिकता और अतार्किकता में विश्वास करते है..... इसको जरुर बताए....????
भारतीय समाज में जातिवाद को स्थापित करने वाले तथाकथित ब्राह्मणों का हाथ रहा है....जिन्होंने समाज को वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ जाति-व्यवस्था में बांटने का काम किया है....! दुनिया के परिदृश्य में भारत के अलावा अन्य देशों में यदि देखें तो पता चलता हैं कि किसी भी समाज को चलाने के लिए तीन वर्गों की आवश्कता होती है......!
जो इस प्रकार से हैं-
1-बौद्धिक वर्ग= जो समाज को चालने के लिए दिशा-निर्देश देने का काम करते हैं!
2-योद्ध वर्ग= ये लोग बाहरी आक्रमण से रक्षा करने का काम करते हैं!
3-श्रमिक वर्ग= ये लोग समाज में अपने श्रम के माध्यम से खाने-पीने के अलावा तमाम सारी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं!
अब सवाल यह खड़ा होता है दुनिया के तमाम सारे छोटे से लेकर बड़े देश भारत की तुलना में आज तकनीकी, शैक्षणिक, स्वास्थ्य-व्यवस्था, रहन-सहन, खान-पान, आवागमन की सुविधा, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से आगे क्यों है....?????
मेरा मानना हैं कि जो भी देश वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते हैं वो कोई भी देश हो निरंतर विकास के पथ पर अग्रसित होता रहेगा......!
अब फिर सवाल उठता है क्या भारत में वैज्ञानिकता और तार्किकता को माना जाता हैं यहां तो ऐसे उदाहरण मिलते है जहां पर खीर-खाने से बच्चें पैदा हो जाते है, जहां मिट्टी की मूर्ति तथाकथित गणेश हजारों टन लीटर दूध पी जाते हैं.....! जबकि बच्चें कैसे पैदा होते है आज सभी को पता हैं, जिस देश में गरीब बच्चों को पिलाने के लिए दूध नहीं मिलता हो वहां पर अंधविश्वास ने नाम पर हजारों टन लीटर दूध बहा दिया जाता हैं...!
अब जो लोग आरक्षण (प्रतिनिधित्व) का विरोध करते हैं शायद ये लोग भूल जाते हैं, समाज में पढ़ने-लिखने का अधिकार या समाज के प्राकृतिक संसाधनों पर किसका अधिकार रहा है....????
इतिहास इस बात का गवाह है भारत में ब्राह्मणों, क्षत्रिय और वैश्यों का इन सब पर जो अधिकार बनाया या यूं कहें क्या ये आरक्षण नहीं था....????
इसीलिए मैं यह कहना चाहता हूँ आरक्षण कोई नई-व्यवस्था नहीं बल्कि जो हजारों सालों से भारत में विद्धमान रही है उसी को खत्म करने का काम आधुनिक भारत के लाखों-करोड़ों के मुक्तिदाता भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर द्वारा निर्मित “भारत का संविधान” ने 26 जनवरी 1950 से जब भारत में लागू हुआ.....! तबसे समाज में जिनको हजारों सालों से प्राकृतिक संसाधनों के वंचित रखा गया था...! इस दिन से समाज के सभी लोगों का प्रतिधिनित्व हो, जिसके लिए आरक्षण (प्रतिनिधित्व) की व्यवस्था की गई......!
आरक्षण के संदर्भ में बाबासाहब ने दो बातें कही थी- पहली बात तो यह है कि सबको अवसर की समानता मिलनी चाहिए और दूसरी बात कुछ समुदायों को, जिनकी ओर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, प्रशासन में आरक्षण या प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए! 
अब समाज के कुछ सवर्ण लोग बात करते है- आरक्षण जातिवाद फैला रहा है....!
दोस्तों मैं पूछना चाहता हूँ, भारत में आरक्षण पहले था या वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया गया....
जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं....! उन महानुभावों से विनम्र अनुरोध है कि इसका जवाब दें जिससे मैं भी ज्ञान प्राप्त कर सकूं.....!
लोकतंत्र के बारे में मैं कहना चाहता हूँ कि स्वतंत्र भारत में भारत का संविधान’ 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ । उसी दिन से भारत में जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार स्थापित हुई । लेकिन हकीकत क्या है, शायद किसी से छिपी नहीं रह गई है ? इसलिए लोकतंत्र के बारे में भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने बहुत पहले ही कहा था कि लोकतंत्र सिर्फ शासन की एक विधा ही नहीं है, मुख्य रूप से यह जीवन के साथ जुड़ने का एक तरीका है और अनुभव को संयुक्त रूप से प्रेषित करना है । यह वास्तव में अपने साथियों के प्रति सम्मान का भाव दिखाने और आदर प्रकट करने जैसा है ।वह इसे भाईचारे के बराबर मानते हैं और कहते हैं कि भाईचारा लोकतंत्र का एक और नाम है अन्यत्र उन्होंने इसे अपने तीन प्रिय सिद्धांत- स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा कहा है ।

मेरे अनुसार इसका हल 21वीं सदी में यह होगा-
अब सवाल उठता है जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं । वो किस तरह का समाज बनाना चाहते है..?????
क्या इस तरह का समाज जिसमें गैरबराबरी-व्यवस्था को बनाए रखें....??????
या फिर गैरबराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर मानवतावादी व्यवस्था बनाने वाली विचारधारा जिसमें संपूर्ण मानव का निर्माण समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व एवं न्याय के आधार पर किया जा सकें। ऐसी सामाजिक-व्यवस्था बनाने के लिए हमें अम्बेडकरी विचारधारा की आवश्कता होगी । इसको हम अम्बेडकरवाद कह सकते है । ऐसी व्यवस्था में सबको विकास एवं समान प्रतिनिधित्व का अधिकार मिलता है ।
अम्बेडकरवाद किसी भी धर्म, जाति या रंगभेद को नहीं मानता, अम्बेडकरवाद मानव को मानव से जोड़ने या मानव को मानव बनाने का नाम है । अम्बेडकरवाद वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानव के उत्थान के लिए किए जा रहे आन्दोलन या प्रयासों के नाम हैं ।
अम्बेडकरवाद “भारत के संविधान” को भी कहा जा सकता है ।
एक अम्बेडकरवादी होना तभी सार्थक है, जब मानव वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना कर समाज और मानवहित में कार्य किया जाए ।
अब तय आप लोग करें...... गैरबराबरी वाला समाज चाहिए या समतामूलक समाज......
जरूर बताए  .....!
फिर जी खोलकर आरक्षण का विरोध करें....
मैं आप के साथ में कधें-से कंधा मिलाकर चलूंगा.......!


रजनीश कुमार अम्बेडकर 
पी-एच.डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभगा 
म.गां. अं. हिं.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
मो.-09423518660
email: rajneesh228@gmail.com