हमारा समाज एक बेहतर समाज कैसे बने....???
जिसकी बात आए दिन जो भी लोग करते रहते हैं… उनसे मेरा एक सवाल कि आप वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते है
या फिर आप अवैज्ञानिकता और अतार्किकता में विश्वास करते है..... इसको जरुर
बताए....????
भारतीय समाज में जातिवाद को स्थापित करने वाले
तथाकथित ब्राह्मणों का हाथ रहा है....जिन्होंने समाज को वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ
जाति-व्यवस्था में बांटने का काम किया है....! दुनिया के परिदृश्य में भारत के अलावा
अन्य देशों में यदि देखें तो पता चलता हैं कि किसी भी समाज को चलाने के लिए तीन
वर्गों की आवश्कता होती है......!
जो इस प्रकार से हैं-
1-बौद्धिक वर्ग= जो समाज को चालने के लिए
दिशा-निर्देश देने का काम करते हैं!
2-योद्ध वर्ग= ये लोग बाहरी आक्रमण से रक्षा
करने का काम करते हैं!
3-श्रमिक वर्ग= ये लोग समाज में अपने श्रम के
माध्यम से खाने-पीने के अलावा तमाम सारी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं!
अब सवाल यह खड़ा होता है दुनिया के तमाम सारे
छोटे से लेकर बड़े देश भारत की तुलना में आज तकनीकी, शैक्षणिक, स्वास्थ्य-व्यवस्था,
रहन-सहन, खान-पान, आवागमन की सुविधा, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप
से आगे क्यों है....?????
मेरा मानना हैं कि जो भी देश
वैज्ञानिकता और तार्किकता में विश्वास करते हैं वो कोई भी देश हो निरंतर विकास के
पथ पर अग्रसित होता रहेगा......!
अब फिर सवाल उठता है क्या भारत में
वैज्ञानिकता और तार्किकता को माना जाता हैं यहां तो ऐसे उदाहरण मिलते है जहां पर
खीर-खाने से बच्चें पैदा हो जाते है, जहां मिट्टी की मूर्ति तथाकथित गणेश हजारों
टन लीटर दूध पी जाते हैं.....! जबकि बच्चें कैसे पैदा होते है आज सभी को पता हैं,
जिस देश में गरीब बच्चों को पिलाने के लिए दूध नहीं मिलता हो वहां पर अंधविश्वास
ने नाम पर हजारों टन लीटर दूध बहा दिया जाता हैं...!
अब जो लोग आरक्षण (प्रतिनिधित्व) का विरोध
करते हैं शायद ये लोग भूल जाते हैं, समाज में पढ़ने-लिखने का अधिकार या समाज के
प्राकृतिक संसाधनों पर किसका अधिकार रहा है....????
इतिहास इस बात का गवाह है भारत में
ब्राह्मणों, क्षत्रिय और वैश्यों का इन सब पर जो अधिकार बनाया या यूं कहें क्या ये
आरक्षण नहीं था....????
इसीलिए मैं यह कहना चाहता हूँ आरक्षण कोई
नई-व्यवस्था नहीं बल्कि जो हजारों सालों से भारत में विद्धमान रही है उसी को खत्म
करने का काम आधुनिक भारत के लाखों-करोड़ों के मुक्तिदाता भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी.
आर. अम्बेडकर द्वारा निर्मित “भारत का संविधान” ने 26 जनवरी 1950 से जब भारत में
लागू हुआ.....! तबसे समाज में जिनको हजारों सालों से प्राकृतिक संसाधनों के वंचित
रखा गया था...! इस दिन से समाज के सभी लोगों का प्रतिधिनित्व हो, जिसके लिए आरक्षण
(प्रतिनिधित्व) की व्यवस्था की गई......!
आरक्षण के संदर्भ में बाबासाहब ने दो बातें
कही थी- पहली बात तो यह है कि सबको अवसर की समानता मिलनी चाहिए और दूसरी बात कुछ
समुदायों को, जिनकी ओर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया
गया है, प्रशासन में आरक्षण या प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए!
अब समाज के कुछ सवर्ण लोग बात करते है- आरक्षण
जातिवाद फैला रहा है....!
दोस्तों मैं पूछना चाहता हूँ, भारत में आरक्षण
पहले था या वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया गया....
जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं....! उन
महानुभावों से विनम्र अनुरोध है कि इसका जवाब दें जिससे मैं भी ज्ञान प्राप्त कर
सकूं.....!
लोकतंत्र के बारे में
मैं कहना चाहता हूँ कि स्वतंत्र भारत में ‘भारत का
संविधान’ 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ ।
उसी दिन से भारत में ‘जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता की सरकार’ स्थापित हुई । लेकिन
हकीकत क्या है, शायद किसी से छिपी नहीं रह गई है ? इसलिए लोकतंत्र के बारे में भारतरत्न बाबासाहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने
बहुत पहले ही कहा था कि “लोकतंत्र सिर्फ शासन की एक विधा ही
नहीं है, मुख्य रूप से यह जीवन के साथ जुड़ने का एक तरीका है
और अनुभव को संयुक्त रूप से प्रेषित करना है । यह वास्तव में अपने साथियों के
प्रति सम्मान का भाव दिखाने और आदर प्रकट करने जैसा है ।” वह
इसे भाईचारे के बराबर मानते हैं और कहते हैं कि “भाईचारा लोकतंत्र का एक और नाम है”
अन्यत्र उन्होंने इसे अपने तीन प्रिय सिद्धांत- स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा कहा है ।
मेरे अनुसार इसका हल 21वीं
सदी में यह होगा-
अब सवाल उठता है जो लोग आरक्षण का विरोध करते
हैं । वो किस तरह का समाज बनाना चाहते है..?????
क्या इस तरह का समाज जिसमें गैरबराबरी-व्यवस्था
को बनाए रखें....??????
या फिर गैरबराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर
मानवतावादी व्यवस्था बनाने वाली विचारधारा जिसमें संपूर्ण मानव का निर्माण
समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व एवं न्याय के आधार पर किया जा सकें। ऐसी सामाजिक-व्यवस्था
बनाने के लिए हमें अम्बेडकरी विचारधारा की आवश्कता होगी । इसको हम “अम्बेडकरवाद” कह
सकते है । ऐसी व्यवस्था में सबको विकास एवं समान प्रतिनिधित्व का अधिकार मिलता है ।
अम्बेडकरवाद किसी भी धर्म, जाति या रंगभेद को नहीं मानता, अम्बेडकरवाद मानव को मानव से जोड़ने या मानव को मानव बनाने का नाम है ।
अम्बेडकरवाद वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मानव के उत्थान के लिए किए जा रहे
आन्दोलन या प्रयासों के नाम हैं ।
अम्बेडकरवाद “भारत के संविधान” को
भी कहा जा सकता है ।
एक
अम्बेडकरवादी होना तभी सार्थक है, जब
मानव वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपना कर समाज और मानवहित में कार्य किया जाए ।
अब तय आप लोग करें...... गैरबराबरी वाला समाज
चाहिए या समतामूलक समाज......
जरूर बताए
.....!
फिर जी खोलकर आरक्षण का विरोध करें....
मैं आप के साथ में कधें-से कंधा मिलाकर
चलूंगा.......!
रजनीश कुमार अम्बेडकर
पी-एच.डी., शोध छात्र, स्त्री अध्ययन विभगा
म.गां. अं. हिं.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
मो.-09423518660
email: rajneesh228@gmail.com