Tuesday 15 July 2014

बहुजन रंगमंच को नया आयाम देते: श्याम कुमार
 रजनीश कुमार अम्बेडकर


     अंबेडकरी आंदोलन अब महज विचार-चिंतन और साहित्य तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि रंगमंच के माध्यम से भी सामाजिक परिवर्तन का काम जारी है। लखनऊ में पिछले दिनों सम्पन्न चौथे बाल नाट्य समारोह एवं दूसरे बाबा साहब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर प्रबुद्ध नाट्य समारोह की अपार सफलता ने बहुजन रंगमंच के बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त किया। लखनऊ में पिछले कई वर्षों से भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी की स्थापना करके ऊर्जावान और अंबेडकरी मिशन के प्रति समर्पित युवा रंगकर्मी श्री श्याम कुमार बहुजन रंगकर्म को नया आयाम देने के काम में दिन-रात लगे हुए हैं। श्याम जी दलितों में बेहद पिछड़े धानुक जाति से हैं। श्याम आरंभ से ही स्पोर्ट्स में काफी सक्रिय रहे और 12 वर्ष की उम्र में ही उन्हें भारोत्तोलन (वेट लिफ्टिंग) में राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला उन्होंने महज 16 वर्ष में भारोत्तोलन में जूनियर स्टेट चैम्पियन और 17 वर्ष में सीनियर स्टेट सिल्वर मेडल के साथ 1991 में लखनऊ विश्वविद्यालय से सिल्वर स्टार बेस्ट अवार्ड प्राप्त किया


श्याम स्पोर्ट्स में सक्रिय तो थे लेकिन बाबा साहेब डॉ अंबेडकर के विचारों से गहरे स्तर पर प्रभावित होने के कारण वे अपने समाज के लिए कुछ खास करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें रंगमंच का माध्यम सबसे बेहतर लगा और 1996 में वे सक्रिय रूप से रंगमच से जुड़ गए। पहले कई ग्रुप के साथ काम किया। वंशी कौल (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली) के साथ श्याम ने 1996-97 तक रंग विदूषक रंगमंडल, भोपाल में एक वर्ष तक रहकर नाटक की बारीकियाँ सीखीं। लेकिन माता जी की तबियत ख़राब होने के कारण उन्हें वापस लखनऊ आना पड़ा और फिर उन्होंने भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ में 1997-98 तक काम किया।  सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ (पूर्व निदेशक, भारतेंदु नाट्य अकादमी, लखनऊ) की ‘निपा रंगमंडली संस्था’ में इनके साथ बहुत कुछ सीखने को मिला। इसलिए सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ और वंशी कौल को वे अपना थियेटर का गुरु मानते हैं। सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ के साथ लाहौर में आयोजित वर्ल्ड आर्ट परफार्मिग फेस्टिवल, 2005 में जाने का मौका मिला। वहाँ ‘बेगम और बागी’ नाटक में श्याम ने प्रमुख भूमिका निभाई और श्याम के बेटे मानवेन्द्र कुमार ने इसी नाटक में बेगम के लड़के का रोल किया।



रंगमंच में सक्रिय रहते हुए श्याम के मन में दलित रंगमंच को लेकर हमेशा एक बेचैनी सी बनी रहती थी और वे रंगमंच को बाबा साहेब की वैचारिकी से जोड़कर कुछ खास करना चाहते थे। अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 2004 में सम्यक् नाट्य संस्थान की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य बहुजन रंगकर्म के प्रति समर्पित लेखकों, निर्देशकों एवं अभिनेताओं को मंच प्रदान करना था। साथ ही आम आदमी को उत्कृष्ट एवं उद्देश्यपूर्ण नाट्य प्रस्तुतियों तथा नाट्य प्रदर्शनों के द्वारा नाट्य विधा से जोड़ना भी था। इनकी ये भी कोशिश रही कि विशेषकर वंचित तबके से जुड़े समसामयिक विषयों, उपन्यास व कहानियों पर नाटक तैयार कर उनका मंचन हो। ‘लखनऊ महोत्सव’ में भी इनकी संस्था हर बार नाटकों का सफल मंचन करती आ रही है। बाद में अपने काम को और विस्तार देने के लिए श्याम ने 2011 में भारतीय दलित नाट्य अकादमी की स्थापना की। 2014 में इसका नाम बदलकर भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी कर दिया गया। श्याम के साथ उनका पूरा परिवार इनके साथ नाटक में सक्रिय है। इनके दोनों बच्चे मानवेंद्र और शाश्वत तथा पत्नी अर्चना आर्या इनके साथ हमेशा समर्पित रहते हैं। अर्चना आर्या से श्याम जी की पहली मुलाकात रंगमंच के माध्यम से 1996 में लखनऊ में हुई थी। अर्चना जाटव जाति से थीं इसलिए उनके घरवाले शादी के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन इस विरोध के बावजूद दोस्तों की मदद से 1997 में ये दोनों जीवनसाथी बन गए और अंबेडकरी मिशन में एक साथ लगे हुए हैं।


     अभी तक श्याम और अर्चना ने मिलकर लगभग 40 नाटकों में अभिनय व 25 नाटकों का निर्देशन किया है। जिसमें कुछ प्रमुख नाटक हैं- एक था गधा उर्फ़ अलादाद खां, तुक्के पे तुक्का, चंद्रिमा सिंह उर्फ़ चमकू, मृच्छकटिकम (मिट्टी की गाड़ी), हर क्षण विदा है, सदा सार्थक बुद्ध, नीति मानकीरिण, द ग्रेट राजा मास्टर, बेगम और बागी, नया बीज, देशद्रोही की माँ, दहशत आत्म अग्नि, चुनाव चक्रम, रेशम, सलीम शेरवानी की शादी, स्वप्न मृत्यु, बारह सौ छब्बीस बटा सात, कथा एक पेड़ की, पूरब से पश्चिम की ओर, अहसास, अश्वत्थामा, रावण, भरतनाट्य (मिसफिट), डोम पहलवान, कामरेड का बक्सा, जब मैंने जात छुपाई, आषाड़ का एक दिन, बुद्धं सरणं गच्छामि, 23 मार्च भगाणा कांड, थेरीगाथा और दिल्ली की गद्दी पर खुसरो श्याम और अर्चना के थियेटर ग्रुप में सबसे कम उम्र 3 वर्ष से लेकर बड़े-बुजुर्ग कलाकार तक काम करते हैं अभी तक लगभग 300 लोगों में 200 लड़कियों और 100 लड़कों को ये अपने वर्कशॉप में प्रशिक्षण दे चुके हैं श्याम इन बच्चों को खुले माहौल जैसे मोहल्ले/पार्क आदि में प्रशिक्षण देते हैं क्योंकि अभी इनके पास इतने संसाधन नहीं हैं। लखनऊ में अब नाटकों के माध्यम से समाज की समस्याओं को सामने लाने वालों में श्याम की संस्था का नाम बड़े ही गर्व से लिया जाता है। संसाधनों की कमी के बावजूद श्याम दलित-पिछड़े वर्ग के बच्चों को रंगमंच का निःशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। श्याम की समाज के प्रबुद्ध वर्ग से अपेक्षा है कि स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के सेमिनार/कार्यक्रमों में नाटकों का मंचन होना चाहिए जिससे समाज की समस्याओं और अच्छाइयों को दृश्य एवं श्रव्य दोनों के माध्यम से पेश किया जा सके लोगों पर इस माध्यम का प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ता है। 


  
     श्याम ने लखनऊ से बाहर भी कई राज्यों में अपने नाटकों का मंचन किया है। सेंटर फॉर दलित लिटरेचर एवं आर्ट, नई दिल्ली द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन,2012 में श्याम के निर्देशन और मुख्य भूमिका में ‘डोम पहलवान’ नाटक का शानदार मंचन हुआ। 2013 में  अंबेडकरी युवा साहित्य सम्मेलन, यवतमाल, महाराष्ट्र में कॉमरेड का बक्सा नाटक काफी प्रशंसित रहा था। इन्होंने कुछ टेलीविज़न धारावाहिकों में भी अभिनय किया है। हम भी इंसान हैं (टेली फिल्म), अपने हुए पराये’, सज्जाद जहीर पर वृत्तचित्र तथा जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘गुंडा’ आदि में इन्होंने अभिनय किया है। साथ ही अर्चना आर्या सरसों के फूल, फ़ांस आदि में काम कर चुकी हैं। रंगमंच में किए योगदान के लिए श्याम को युवा रंगकर्मी सम्मान, समन्वय सेवा सम्मान, दलित रंगकर्मी एवं सामाजिक उत्थान सेवा सम्मान, युवा अम्बेडकरी नाट्य निर्देशक सम्मान, राष्ट्रीय युवा नाट्य सम्मान जैसे पुरस्कार-सम्मानों से नवाजा गया है।



श्याम कुमार अब हर साल बहुजन नाट्य समारोह का बड़े पैमाने पर आयोजन करते हैं। इसके पीछे उनका मुख्य उद्देश्य बहुजन समाज के महानायकों महात्मा ज्योतिबाराव फूले, भगवान बुद्ध, शाहूजी महाराज, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर और पेरियार आदि की विचारधारा को रंगमंच के माध्यम से समाज के बीच ले जाना है और पूरे बहुजन समाज को एक करना है। वे चाहते हैं कि इसके माध्यम से पूरे देश का बहुजन रंगमंच सामने आए और वंचित समाज की नई पीढ़ी इससे जुड़े। 


इन समारोहों में अब वैचारिक विचार-विमर्श भी होती है। इनका उद्धेश्य ही है कि इसके द्वारा अपने समाज के साहित्यकार, नाटककार, मीडियाकर्मी, थियेटर, फिल्म एवं टी.वी. कलाकार, लेखक, चिंतक, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता सब एक जुट हों और मिलकर काम करें। भारतीय बहुजन नाट्य अकादमी समाज के सभी पहलुओं को रंगमंच के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा है और सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवतन लाने के लिए प्रयासरत है जिससे समाज के हर क्षेत्र में लोगों को प्रतिनिधित्व का अधिकार मिल सकें। निश्चित रूप से श्याम कुमार वंचित तबके के लिए एक बड़ा काम कर रहे हैं।

    रजनीश कुमार अम्बेडकर

शोधार्थी
        बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर दलित एवं जनजाति अध्ययन केंद्र
म.गां.अ.हिं.वि.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
    मो.-08423866182/09305366228
   Email:rajneesh228@gmail.com

Thursday 10 July 2014

विषय: महिलाओं के बढ़ते कदम और चुनौतियां               

प्रस्तावना
आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर हर क्षेत्र में चल रही है इस संदर्भ में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने बहुत पहले ही कहा था कि “किसी भी समाज की प्रगति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समाज में महिलाओं की कितनी प्रगति हुई है महिला सशक्तिकरण की पहल सर्वप्रथम अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मलेन, नैरोबी (कीनिया) में सन 1985 में शुरू हुई इसके बाद विश्व के अनेक भागों में इस पहल ने एक आन्दोलन का रूप ले लिया महिला सशक्तिकरण का सामान्य अर्थ है- महिला को शक्तिसंपन बनाना, परन्तु पूर्ण रूप से इसका अभिप्राय सत्ता में भागेदारी एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की समान भागेदारी से है निर्णय लेने की क्षमता सशक्तिकरण का एक बड़ा मानक कहा जा सकता है इसके फलस्वरूप महिलाओं का राजनीतिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर निर्णय लेने की स्वतंत्रता से है

भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए निम्न प्रयास किये गये हैं-
  राजनीतिक भागेदारी
महिलाओं का राजनीतिक भागेदारी की दिशा में 73वां व 74वां संविधान संशोधन-1993 एक महत्वपूर्ण कदम रहा है राजनीतिक भागेदारी का अर्थ औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की भागेदारी से है इसलिए ग्राम पंचायतों व शहरी निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण के फलस्वरूप गांव की सत्ता में महिलाओं को भागेदारी का अवसर मिला है इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय 21 जुलाई 2011 को पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की सीमा 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया जिसमें पंचायती राज संस्थाओं में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 14 लाख से अधिक हो गई संविधान के इस 110वें संविधान संशोधन का उद्देश्य पंचायतों में SC/ST की महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना है महिलाओं को 50% आरक्षण सर्वप्रथम वर्ष 2005 में बिहार राज्य ने दिया वर्तमान में देश के निम्न राज्यों में महिलाओं को 50% आरक्षण दिया जा रहा है- बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, केरल व महाराष्ट्र है इसी का नतीजा है कि राजनीति में पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती, पचिश्म बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जयललिता, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित सदन में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज आदि महिलाओं ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसे हम राजनीतिक सशक्तिकरण के रूप में देख सकते है
   
शैक्षणिक भागेदारी   
भारत के विकास में महिला साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान रहा है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि “महिला-शिक्षा” के प्रति जो मशाल सावित्रीबाई फूले ने जलायी थी पिछले कुछ दशकों से महिला-साक्षरता में काफी वृद्धि हुई है, भारत विकास के पथ पर अग्रसर हुआ है इसने न केवल मानव संशाधन के अवसर में वृद्धि की है, बल्कि घर के आँगन से ऑफिस के कारीडोर के कामकाज और वातावरण में भी बदलाव आया हैं महिलाओं के शिक्षित होने से न केवल बालक-बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिला, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और सर्वागीण विकास में भी तेजी आई है 2011 जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता 64.6% है, जबकि पुरुषों का साक्षरता 80.9% है इसी संदर्भ में  महात्मा ज्योतिबराव फूले के अनुसार-“यदि परिवार में लड़के और लड़की में से किसी एक को पढ़ाना हो तो लड़की को पढ़ाना बेहतर होगा क्योंकि एक पढ़ी-लिखी महिला पूरे परिवार को शिक्षित करती है जिससे हमारे समाज का चहुमुंखी विकास होता है

आर्थिक भागेदारी
महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों में कार्य करने के कारण इनके आत्मविश्वास, स्वाभिमान, मान-सम्मान आदि में वृद्धि होती है, क्योंकि घर से बहार एक समूह के रूप में छोटी-छोटी बचत करती है, ऋण लेकर, लघु उद्योग स्थापित कर महिलाएं आत्मनिर्भर हुई है स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में काम करने के कारण महिलाओं की स्वंय निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है महिलाओं द्वारा बैंकों के साथ लेने-देने, कागजी कार्रवाई आदि करने से उनमें आत्म-विश्वास पनपता है घर की चार दीवारी में कैद रहने वाली महिलाएं इस समूहों के माध्यम से पंचायत संस्थाओं, बैंक, सरकारी तंत्र, गैर-सरकारी संगठनों आदि के संपर्क में आती है जिससे उनके पास अधिक सूचना एवं संसाधन उपलब्ध होते है सूचना एवं संसाधनों की उपलब्धता महिलाओं को सशक्त बनाती है स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में महिलाएं आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनती है जिससे परिवार में उनकी स्थिति में सुधार होता है तथा इस प्रकार उपलब्ध धन का वे अपने निजी कार्य या बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य इत्यादि में खर्च करती है आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर महिलाओं के साथ घरेलू-हिंसा के मामले कम होते है हमारे देश में प्राय: महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, पापड़ बनाने, आचार बनाने जैसे आदि कार्य करती है इस प्रकार सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे महिलाओं की स्वयं की व्यक्तिगत या सामूहिक शक्ति बेहतर करने की क्षमता का विकास होता है

सामाजिक भागेदारी  
सामाजिक भागेदारी के अंतर्गत उत्पीड़ित महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा जिला स्तर पर अल्पावास गृह की स्थापना की जा रही है क्योंकि अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम-1896 तथा घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम-2005 के अनुसार महिलाओं एवं किशोरियों की खरीद-फरोख्त से बचाने तथा घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को संरक्षण एवं सुरक्षा देना अल्पावास गृह का मुख्य उद्देश्य है इसके अंतर्गत अभी हाल में बिहार सरकार ने विशेष रूप से कामकाजी महिलाएं जिन्हें अपने कार्य के दौरान 5 साल या उससे कम उम्र के बच्चों को कार्य स्थल पर रखने में सुविधा होती है महिलाओं में कानून का व्यावहारिक ज्ञान बढ़ाने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है नुक्कड़ नाटकों के जरिये सक्षम वातावरण के निर्माण के उद्देश्य से दहेज़ उत्पीड़न, वेश्यावृत्ति, बाल-विवाह, भ्रूण हत्या, क़ानूनी साक्षरता, आर्थिक स्वावलंबन के मुद्दें पर लोक कलाओं की प्रस्तुति करके महिलाओं को सामाजिक रूप से सशक्त किया जा रहा है

सांस्कृतिक भागेदारी  
महिला सांस्कृतिक भागेदारी के अंतर्गत महिलाओं के सांस्कृतिक के लिए मुख्य रूप से मेला का आयोजन किया जाता है जिसका उद्देश्य परम्परा कौशल तथा लोक चित्रकला, लोक नाट्यकला, लोकगीत आदि को जीवित रखना है आदिवासियों में इस परम्परा को आज भी हम देख सकते है स्वयं सहायता समूह के द्वारा उत्पादित वस्तुओं का प्रदर्शन करना भी मेला का एक अहम उद्देश्य होता है इस तरह के आयोजन कर विलुप्त होती सांस्कृतिक परम्पराओं और इन कलाओं से जुड़ें समुदाओं के बीच कला की व्यावसायिक गुणवत्ता को बढ़ाकर तथा आजीविका के साथ जोड़कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाना इसका मुख्य लक्ष्य है

महिलाओं के समक्ष चुनौतियां
v आज के माहौल में महिला सशक्तिकरण की बात करने से पहले हमें सवाल का जवाब ढूढना जरुरी है कि क्या वास्तव में महिलाएं अशक्त है ? यदि अशक्त है तो इतने संवैधानिक उपायों के बाद भी महिलाएं विकास की मुख्य धारा से क्यों नहीं जुड़ सकी ?
v हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून-2005 में आया, इस कानून की धारा-6 के अनुसार महिलाओं को जन्म के साथ ही पुश्तैनी संपत्ति पर घर के पुरुषों की तरह उत्तराधिकारी बना दिया गया पुश्तैनी संपत्ति पर लड़कियों को वही अधिकार मिल गए, जो अब तक लड़कों को मिल रहे थे भले ही लड़कियों के दायित्व भी लड़के के समान हो गए बहुत ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि पुश्तैनी संपत्ति में बेटी को बेटे के बराबर का अधिकार अभी मात्र कागजों पर ही है जो भी बेटी इस अधिकार की मांग करती है, उसके सबसे पहले तो घर से रिश्ते टूट जाते है और कहीं-कहीं तो सगे भाई ने इस लिए बहन का कत्ल कर दिया क्योंकि वह संपत्ति में से अपना हिस्सा मांग रही थी
v महिला दिवस की सार्थकता तभी साबित होगी जब उन्हें कोई प्रताडि़त नहीं करेगा, कन्याओं की भ्रूण में ही हत्या नहीं की जायेगी, बलात्कार जैसी घिनौनी घटनाओं का नामो-निशाँ नहीं होगा, दहेज के लालच में जिंदा नहीं जलाया जाएगा या उनकी खरीद-बिक्री नहीं होगी
v हर साल 8 मार्च को तमाम तामझाम और हो-हल्ले के साथ महिला सशक्तीकरण का प्रतीक महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष महिला दिवस की 104वीं सालगिरह पर यह देखना भविष्य के प्रति एक उम्मीद पैदा करता है कि महिलाएं सियासत से लेकर व्यापार, शिक्षा से लेकर खेलकूद तक में सफलता के नये अध्याय लिख रही हैं। बावजूद इसके देश में महिलाओं की स्थिति में आए इस बदलाव को समाज में मामूली परिवर्तन के रूप में ही देखा जाना चाहिए, क्योंकि तमाम सुधारों और आजादी के बाद भी महिलाओं की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है, जितनी होनी चाहिए थी।

v 2 अप्रैल 2013 को “क्रिमिनल लॉ एक्ट -2013” वर्मा कमेटी द्वारा लाया गया जिसमें यह कहा गया कि बलात्कार व अन्य अपराधों को रोकने में काम करेगा क्या वेदों से लेकर मनुस्मृति तक सारे धर्म शास्त्रों में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में नारी को पुरुष की संपत्ति वर्णित किया गया है श्रृष्ठी के रचयिता ब्रह्मा का अपनी ही पुत्री सरस्वती से किया गया बलात-संग एक चर्चित कथा सर्वविदित है जो धर्म स्त्री को देवी भी मानता है और उपभोग की वस्तु भी कहता है, ऐसे धर्मावलंबी देश में कानून के डंडे से वहां निवासरत लोगों के आचरण को कैसे परिवर्तित किया जा सकता है ? आज इस पर कोई चिंतन नहीं करना चाहता सच तो यही है कि बलात्कार की न तो कोई जाति होती और न ही कोई धर्म बलात्कार का न तो रूप-रंग होता है न ही कोई चेहरा लेकिन भारत में बलात्कार की जाति भी होती है और धर्म भी, क्योंकि इसे धार्मिक संरक्षण मिला हुआ है जो समाज दो हजार सालों से भी अधिक समय से जिस आचार संहिता से बंधा रहकर जीवन यापन करता है, वही उसके आचरण में होता है मनुस्मृति को पढ़ लेने से प्रत्येक भारतीय को भारतीय आचरण का मायाजाल पूर्णतया समझ में आ जायेगा इसलिए हम यह कहना चाहते हैं कि वर्तमान 21 सदी  दुनियां में भारत इकलौता देश है जहां बलात्कार की जाति होती है और धर्म भी होता है
v क्या सावित्रीबाई फुले ने जितना जोर महिला-शिक्षा पर दिया ? वैसा किसी ने दिया है । यदि नहीं तो खासकर महिलाओं के सामने एक खास चुनौती है । हम उनके जन्मदिन 3 जनवरी को “शिक्षिका-दिवस” के रूप में 21 सदी में मना पायेगें ।
v महिलाओं के प्रति मानसिकता का सवाल-सोनी सोरी का सवाल हो, असम का सवाल हो, या 16 दिसंबर 2012 निर्भया की घटना हो
v वर्तमान में देश के राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की भागेदारी बहुत कम है, आज महज 61 महिला सांसद 545 में से है राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देने के लिए बहुतेरे वादे तो करती है परन्तु अभी भी राजनीतिक पार्टियां में 33% को भी सही से लागू नहीं है भारत को आजाद हुए 66 साल बाद भी सामान्यत: महिलाओं की पहुंच सत्ता और राजनीतिक निर्णय लेने वाले तंत्रों से अब काफी दूर है

सही मायने में देखा जाये तो महिला सशक्तिकरण का अर्थ ही है
महिला को आत्म-सम्मान देना और आत्म-निर्भर बनाना,
ताकि वे अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकें

         क्या महज महिला दिवस को सेलिब्रेट करके, सलामी ठोंककर या नमन करके या उस दिन स्त्री-सम्मान और स्त्री-महिमा की असंख्य बातें करके स्त्रियों का कोई भला हो सकता है? क्या यह ज़रुरी नहीं कि एक दिन नहीं हर दिन स्त्रियों का हो यानि स्त्रियों के पक्ष में हो, स्त्री की समानता के पक्ष में खड़ा हो। स्त्रियों का भला तो तब हो जब हर घर में स्त्री का सही सम्मान (देवी की आड़ में नहीं) हो, उस पर शारीरिक या मानसिक यातना न हो।
महिला सशक्तीकरण के बारे में समाज के विभिन्न वर्गों, व्यवसायों एवं आर्थिक स्तरों से जुड़े  व्यक्तियों (पुरूष व महिला दोनों) की नजर में अलग-अलग मायने हैं। एक ओर यह महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता होना है तो दूसरे रूप में पुरूषों के समान स्थिति को प्राप्त करना। एक सोच के अनुसार पूरी तरह अत्याधुनिकता को अपनाना ही सशक्तीकरण है। उपरोक्त सभी सशक्तीकरण की कतिपय पहलु मात्र है। संपूर्ण एवं समग्र सशक्तीकरण वह स्थिति है जब महिला को व्यक्तित्व के विकास, शिक्षा प्राप्ति, व्यवसाय, परिवार में निर्णय का समान अवसर मिले, जब वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो, शारीरिक व भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करे तथा तमाम रूढि़वादी व अप्रासंगिक रिवाजों, रूढियों के बंधनों से पूरी तरह स्वतंत्र हो। समय के साथ महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता को केवल परिवार, समाज ने ही नहीं बल्कि सरकारी स्तर से भी अनुभव किया गया है। हमारे स्वतंत्र देश के संविधान में स्त्री पुरूष के आधार पर नागरिकों में भेद नहीं किया गया बल्कि समान अवसर दिये गये है। मतदान का अधिकार स्त्री को भी दिया गया जो कि स्वयं में एक क्रांतिकारी कदम हैं। लेकिन आज महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा की घटनाएं एक चुनौतियों के रूप में हमारे सामने उभरी हैं, इसका जवाब भी हम सबको ढूंढना होगा।

(यह शोध पत्र राष्ट्रीय सेमिनार ‘21 वीं सदी में सामाजिक चुनौतियां’ पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर, छतीसगढ़ में 10-12 फरवरी 2014 को पढ़ा गया)

                                                    रजनीश कुमार अम्बेडकर
शोधार्थी
बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर दलित एवं जनजाति अध्ययन केंद्र
म.गां.अ.हिं.वि.वि., वर्धा (महाराष्ट्र)
Email:rajneesh228@gmail.com Mob.08423866182/09305366228
  

संदर्भ सूची:-
1-      वसुधा : अंक 92-93, एम-31, निराला नगर, दुष्यंत कुमार मार्ग, भोपाल-462003
2-      ओझा, एन. एन. (2010) : भारत की सामाजिक समस्याएं, क्रानिकल बुक्स, ए-26, सेक्टर-2, नोएडा-201301
3-      कुमारी, अनीता (2010) : डॉ. अम्बेडकर ने कहा, गौतम बुक सेंटर, C-263 A,
चन्दन सदन, हरदेव पुरी, शाहदरा, दिल्ली-110093
4-      सुमन, डॉ.मंजू (2004) : दलित महिलाएं, सम्यक प्रकाशन, 32/3, क्लब रोड,
पश्चिम पुरी, नई दिल्ली-110063
5-      आदिवासी सत्ता, अंक (जनवरी-2013) : क्वा. नं.-2/H, सड़क- रेलवे एवेन्यू,
सेक्टर-6,भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)-490006
6-      बौद्ध, रोशन (2013) : सुहाग बनाम सिंदूर, सम्यक प्रकाशन, 32/3, पश्चिम पुरी,
नई दिल्ली-110063
7-      इन्टरनेट का उपयोग