Sunday 5 May 2013

वेश्या भी एक औरत होती है......!


वेश्या भी एक औरत होती है......!

          वेश्या....भी एक औरत होती है......! और उसी औरत में सागर की गहराई और हिमालय की ऊँचाई होती है । जिस तरह से सागर की गहराई में सीप और मोती साथ-साथ पाये जाते हैं । उसी प्रकार औरत के हर रूप में एक रूप वेश्या का भी है । यहाँ पर एक उदाहरण देना चाहूँगा....!

    अगर हम सड़क पर जा रहे है और हमारे हाथ में खाने का टिफिन होता है, और वो गिर जाये तो हम उस खाने को उसी सड़क पर पड़ा छोड़ देते है । मगर खाली टिफिन को उठाकर घर में लाकर रख देते है । ये बात कहने में तो आम है, अगर हम इस बात को एक औरत की जिन्दगी से जोड़कर देखे तो शायद हमारे देश की औरत कुछ इसी तरह की जिदंगी जी रही है । औरत माँ भी है, औरत बहन भी है, औरत पत्नी भी है, और औरत देवी भी है जिसकी हम पूजा करते हैं । जिसको हम अपने बुरे वक्त में याद करते है । अपने संकटों को दूर करने के लिए औरत एक ही है । मगर हमारी उस औरत को देखने का नजरियाँ बदल गया है और वो ही नजर हमारे रिश्तों को नया नाम देती है, और ये भी सच है । इसी औरत से हमारी सृष्टि चलती है । एक कड़वा सच ये भी है कि हमारा देश भी नारी प्रधान देश है ।  जिस देश में औरतों की पूजा करते है, मंदिर में जाकर एक औरत जो पत्थर की मूरत में है । हम उसकी पूजा करते है, और उसको कपड़े पहनाते है ।

          मगर दूसरी तरफ अगर वो ही औरत किसी कोठे पर मिल जाये तो चंद रुपये देकर उसके कपड़े उतारने में हम थोड़ी सी भी देर नहीं लगाते है, क्योंकि उस वक्त हमको पता होता है कि हमने उस औरत के शरीर को भोगने की कीमत दी हुई है । माना कि हमने उस औरत के शरीर की कीमत दे दी है क्या उसके आत्मसम्मान को भी हमने खरीद लिया है, पैसो से शरीर तो हमें मिल जायेंगा पर उस आत्मसम्मान का क्या करेंगे । जहाँ सिर्फ प्यार और अपनापन बसता है किसी के लिए...?

          हम इस आधुनिक युग में पैसों से कुछ भी खरीद सकते है मगर किसी की भावनाएं, प्यार और आत्मसम्मान नहीं खरीद सकते हैं ।
          इस संसार का सबसे बड़ा कलंक यह है कि आज तक कोई इन्सान ने किसी भी वेश्या का शरीर तो खरीदा होगा । मगर उसका प्यार, आत्मसम्मान और उसके दर्द को बटोरने की कोशिश नहीं की गई होगी आखिर ऐसा क्यों....? जब हम नारी को देवी का दर्जा देते है तो एक वेश्या भी तो वो ही नारी है । जिसको हम माँ, बहन, और पत्नी के रूप में देखते है, तो क्या वेश्या नारी नहीं हुई...? जिस तरह हम पर कोई भी कष्ट पड़ता है तो हम पल भर में किसी भी देवी या देवता के मंदिर में जाकर उसकी शरण ले लेते है । उसी तरह जब हम को कोई भी गम भुलाना होता है तो हम किसी कोठे पर जाकर उस वेश्या या किसी प्यारी स्त्री की शरण में जाते है । एक वेश्या जिसको एक बंद कमरे में औरत रात के अंधरे में तो सब पाना चाहते है । मगर दिन के उजाले में हम उसको सिर्फ हीन भावना और समाज से तिरस्कृत नजरों से देखते है । वेश्या को सिर्फ अपने इस्तेमाल के लिए प्रयोग करते है मतलब निकला तो जाए वो भी भीड़ में हमे उससे क्या लेना देना....?  

          जिस तरह से अपनी माँ गरीबी और अमीरी नहीं देखती और अपना सारा प्यार अपने बच्चों पर लुटा देती और एक देवी जिसकी हम पूजा करते है फिर भी वो हमारे लिए पूज्य है...एक वेश्या जो ये जानते हुए भी चंद पलों के बाद हर शक्स उसको धोखा देकर छोड़ कर अपने रस्ते चल देगा और पीछे मुड़ कर देखेगा भी नहीं......! फिर भी अपना सर्वस्व निछावर कर देती है ।    
          अब सवाल ये उठता है कि औरत......! एक देवी भी है, औरत वेश्या भी है, औरत माँ भी है, औरत पत्नी और बहन भी है । तो सबसे महान कौन....? जाहिर सी बात है हमारी नजरों में सबसे महान वो वेश्या ही होगी जो जानती है कि ये जहर है । इसके बाद भी वो जहर का घूंट-घूंट पी लेती है.......!

पी के विष का प्याला दिया अमृत.....!
उसने सबको बिकी पैसों की खातिर.....!!
लुटा तन अपना...  उफ़ तक नहीं किया.....!!!

लेकिन नहीं फिर भी हम में और हमारे समाज में इतनी हिम्मत कहा कि उसको महान कहने की, जूठे मुँह कोशिश भी करें । जिस दिन भी हम एक वेश्या को महान या देवी का रूप दे देगे उस दिन वाकई में हमारा और देश महान हो जाएगा । क्या हममें से किसी ने भी....कभी ये जानने की कोशिश कि की....... बाजार में बैठी ये औरत जो चंद रुपयों की खातिर अपनी देह का धंधा करती है । उसकी मज़बूरी क्या होगी.....आखिर क्यों....?

          क्या हममें से किसी ने कभी जानने की कोशिश की है । जिस पल उसके शरीर से खेलते है, क्या हम उसके आत्मसम्मान या भावनाओं  से नहीं खेलते है । माना की हमने उसके शरीर की कीमत चुका दिया । क्या हम उसके आत्मसम्मान की भी कीमत चुका पायेगे.............? अब जो कड़वा सच जो हम कहने जा रहे है । वो सच सब जानते है मगर उस सच को कोई भी भारतीय अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहता है । आखिर ये सच्चाई कड़वी क्या है जो हम इससे मुँह चुराते है....? इन सब के साथ-साथ एक औरत जिसकी हमारे समाज के लोग पूजा करते है, उसका दूसरा रूप वेश्या का भी होता है । व्यक्ति से समाज बना है और इस आदर्श समाज की संरचना भी हमने ही की है । क्या किसी ने सोचा है कि हम चंद रूपये देंकर उस औरत की देह को नहीं रोंदते बल्कि उसकी भावनाओं को रोंदते है । एक माँ को, एक बहन को और एक पत्नी को समाप्त करते है......! सिर्फ अपनी वसनाओं की खातिर कहते है कि स्वाभिमान की ज़िन्दगी हर इन्सान जीना चाहता है । तो क्या एक वेश्या इन्सान नहीं होती या क्या वो भी एक प्यार करने वाला दिल नहीं चाहती है, क्या वोह भी किसी घर की शोभा नहीं बनाना चाहती.....???? मगर समाज के कुछ भूखे लोग, अपनी नजरों से, अपनी हरकतों से उसकी भावनाओं को सुन्न कर देते है ।

          शायद ये भी एक हमारे समाज की विडंबना है कि यहाँ औरत को वेश्या बनाया । उसके बाद भी वेश्या ने अपने लिए नफरात चुनी और सबको प्यार बाँटा....! खुद जली नफरत के आग में पर आदमी को अमृतपान करवाया । अगर हमारे समाज में ये वेश्याएं न हो तो समाज में कितनी गन्दगी बढ जाए । इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है, हर गली, हर शहर में खुले आम बलात्कार होने लगे । वेश्या अपना जिस्म और जान देकर भी हमें आबाद करती है ।
कहते है कि.....!

लकड़ी जल कर कोयला बनी.....!
कोयला जल कर राख.......!!
मैं अभागिन ऐसी जली, कोयला बनी न राख.....!
ऐसी है वेश्या की जिंदगी.........!!

          ये मुमकिन है कहते है कि जिसने हमको जिंदगी दी है और इन्सान हमेशा जिंदगी लेता है । तो यहाँ हमारे कहने का तथ्य ये है कि वेश्या जो की एक औरत है । वो कभी लेती नहीं है हमेशा दूसरों पर अपना सब कुछ लुटा देती है, तो क्या वो हमारे लिए एक औरत या देवी नहीं है...........?
बिलकुल है मगर जरूरत है तो सिर्फ अपनी सोच बदलने की जो आँखे हमको मिली है । उसमें उसकी मूरत बदलने की, अगर हम ऐसा कर पाये तो शायद तभी हर भारतीय दिल से कहेगा कि हमारा देश नारी प्रधान देश है.....!
न तू किसी को सता...!
न किसी कि आहे ले.....!!
हो सके तो कर भला....!     नहीं तो अपनी राह ले.....!!

          हमने बात की कि वेश्या भी औरत होती है । बात आगे बढ़ाते हुए मैं ये कहना चाहूँगा कि पहले हमारे समाज में जबर्दस्ती औरत को वेश्या बनाया जाता था । अपने फायदे के लिए कि जब घर की औरत से मन भर जाये तो अपना स्वाद बदलने के लिए वो किसी और के पास जा सके....! पर आजकल वक्त बदला और बदली हैं सब मान्यतायें । फिर भी कितने आश्चर्य की बात है कि हिरन की नाभि में कस्तूरी होती है और कस्तूरी की सुगंध को बाहर तलाश करता फिरता है । ऐसी ही हालत हर आदमी की है, जो एक औरत को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है और भूल जाता है कि उसकी कस्तूरी तो उसके अपने घर में है ।       
          वेश्यावृत्ति का ठ्पा सिर्फ उन औरतों पे ही क्यों लगाया जाता है जो खुलेआम ये धंधा करती, उन पे क्यों नहीं, जो ये काम तो करती है पर समाज में खुलेआम शरीफ बन कर गुजर बसर कर रही है । अगर एक आम औरत में एक बेटी, एक माँ, एक बहु, एक पत्नी, एक बहन का रूप है तो क्या उस वेश्या में हम क्यों नहीं किसी भी एक रूप को देखते जिसको देखने भर से कब उसे कितना अच्छा महसूस होगा । वो हमारी सोच से भी परे है । उसकी नजरों में वो एक आम उम्र तरसती रहेगी, और वो शरीफजादी जो किसी के घर की रौनक बनी हुई है, सब कुछ करने के बाद उसके माथे पे कोई शिकन तक नहीं है, कोई मलाल नहीं अपने काम का ।

   हमारा कोई अपना नहीं तो क्या हुआ.....!
  जमाने ने हमें बुरा कहा तो क्या हुआ......!!
                                             वक्त आएगा हम भी सब को दिखा देंगे......!
                                              आज पर्दे में चेहरा छिपा है तो क्या हुआ.....!!
                         

रजनीश कुमार अम्बेडकर
                                                            (एम.फिल., स्त्री अध्ययन विभाग)
                                                            महात्‍मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
                                                Mob.  08483008119 (Wardha),  09305366228 (U.P.)
rajneesh1raj@gmail.com

Saturday 4 May 2013

आरक्षण का रूप


मैं आरक्षण को सही मानता हूँ क्योंकि आरक्षण हमारे समाज के शुद्र और अतिशूद्र के लोगों को एक मौका देता है । आगे बढने के लिए क्या उनको मौका नहीं मिलना चाहिए...........???
जिनको हजारों-सालों से कभी पढ़ने नहीं दिया गया ।  जिससे वो भी अन्य लोगों की तरह एकेडमिक में जा सके...???? भारतीय समाज ने तो सिर्फ तीन वर्ण को ही शुरू से प्राथमिकता दी हैं.....
                                                                                                                 अब जब स्वतन्त्र भारत में "बाबासाहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर" द्वारा निर्मित भारतीय संविधान” ने शुद्र और अतिशूद्र के लोगों को "आरक्षण" के माध्यम से आगे बढने और विकास करने का एक मौका दिया तो आप जैसे लोगों को जलन होने लगी कहीं ये लोग भी हमारे बराबर न आ जाए....जबकि सदियों से सारे संसाधनों और मानवीय अधिकारों पर सिर्फ तीन वर्ण के लोगों का ही कब्ज़ा था तो क्या ये सवर्णों का आरक्षण नहीं था....??? 
जिससे समाज में असमानता की खाई पैदा कर दी है....